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वेगा अईजा रे म्हारा वीरा थारी वाट जोऊँ…

भाई – बहन के बीच प्रेम और विश्वास की डोर से बंधा अटूट बंधन का पर्व रक्षाबंधन श्री मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिती , मालवी जाजम एवं अखंड संडे के संयुक्त तत्वावधान में धूम धाम से मनाया गया । सभी धर्माे के लोगों ने एक रंग में रंगकर इक दूजे को रक्षा सूत्र बांधकर बधाई दी ।
मालवी लोकगीतों के माध्यम से बहनों द्वारा भाईयों की स्तुती की गई , वहीं देश में विभिन्न धर्मो और मज़हब के लोग भी आपस में प्रेम और भाईचारे की इस स्नेह डोर से बंधे रहे ऐसी मंगल कामना की गई । साथ ही देश की सीमाओं पर तैनात सैनिक जिनके कांधे पर करोड़ों बहनों और उनके सुहाग की रक्षा की जिम्मेदारी है उनके लिए भी दुआंऐं मांगी गई।
आज के बिगड़ते दौर में नफरत भरे माहौल में पूरे देश को एक सूत्र में पिरोकर रखने की ज़रूरत है ऐसे में मुकेश इन्दौरी की पंक्ति – आका देश का मनका ने बांध दो तीन रंगा प्रेम का तागा ती – पर भी खूब तालियाँ बजी । उन्होंने सीमा पर तैनात अपने भाई की राह देख रही बहन के अंर्तमन की भावनाओं को लोकगीत –
वेगा अईजा रे म्हारा वीरा, थारी वाट जोऊँ दन रात, अब तो आँखां पथरीली हुईगी, थारे बिण लागे सगलो सूणो सूणो, सुणी पड़ी है गांव की गरिया, सुणो पडय़ो है घर आंगण, हुको हुको निकरी गयो पूरो सावण, राखी णो त्यौहार भी अईगयो, वेगा अईजा रे म्हारा वीरा, खूब लड़ांगा झगड़ांगा साथ खेलांगा, झूला में हिंचागा, चहकवा लागेगा यो घर को आंगण, फेर राखी बांधागा, वेगा अईजा रे म्हारा वीरा के माध्यम से व्यक्त कर दाद बटोरी ।
कुसुम मंडलोई ने लोकगीत – बारा मईना की बारा पूनम / एक पूनम के वीरो याद आवे / बारह मईना का बारह वरत / एक वरत पूनम को याद आवे / भाभी याद आवे /भतीजी याद आवे / नानी भाणजी याद आवे / कंचन कटोरा केसर घोली मोतियन अक्षत लगावे म्हारा बेहना पाण भी लई मिश्री भी लई / बेना पताशा भी लई / रेशम गांठ हाथ बंधावे / बारह मईना एक पूनम याद आवे ।
मदनलाल अग्रवाल – हो म्हारा कान्हा आज थारे हाथा में राखी बांधूगी / भाव भक्ति के सिवा और कई नी मांगूगी / एक राखी के तार तार मैं प्यार है बहणा को / सौंगध है थने म्हारा कान्हा / मान ले म्हारी वात / म्हने आपणी बेहण वणईले / बहण द्रोपदी जसो आपणो प्यार म्हने दीजे / आस लई ने अई हूँ भैया / म्हने सदा निभई लिजे / आज थी थने सब कुछ मानूँगा / सुभद्रा जसी प्रीत निभाऊँगा / मधुर मिलन की रूत है स्वीकार कर ले म्हारी विनती /चरण कमल पर खड़ी है या बहणा / माथा पर हाथ धर म्हारा कान्हा / आज थने अईतर नी जावा दूँगा / म्हणे आपणी बहण वणई ले ओ कान्हा । नूप सेहर – चाली आई दौड़ी आई बहणा लई रिश्ता का गहणा / मणावा राखी को त्यौहार / सजावा नेह को व्यवहार / लई अई जैसे हो कोई अवतार / कर लक्ष्मी सो श्रंगार / कलई भई की मुस्कावे / बचपन वापस लोट आवे / वचन भई थी लेवा / सुरक्षा कवच बंधावे अई बेहणा दौड़ी दौड़ी।
रामआसरे पांडे ने बुंदेलखंडी लोकगीत सुणाया – सावण आयो है रिमझिम बरसे है बदरिया/ सखी सहेली सब अपणा के गले लगी री है / भौजी को नंदन ने राखी जो बांधी / छाती लगई है भरी चारो अंखियाँ / अगले बरस मौके फिर से बुलाये भौजी / तुमसे हूँ मैं के हमार तुम ही बाबुल भैया । देवास से आए लियाकत पटेल ने – बहणा के हाथ से राखी बंधई / मिठाई खई / ज़ेहर भी मीठो लागे , मीठा प्रेम प्यार से / ईद की सिवैय्या खावां / फीकी लगी हो चाहे यारों / हो जाएगी मिठी / डाले गले बांहे यार के / राखी और मोहरम को संदेश अमन शांति / विनती करूँ हिन्दु – मुसलमान से / न लगने देना आग जाती वाद की / दुआ करां हम सब राम और रहमान से सुनाकर अमन और भाईचारे का संदेश दिया ।
हरमोहन नेमा , ओम उपाध्याय , नंदकिशेार चौहान , देवीलाल गुर्जर, सुभाष निगम , अशफाक हुसैन , राशेश्याम यादव , जितेन्द्र शिवहरे , अनिता सेरावत , वीरजी छाबड़ा आदि ने भी मालवी रचनाओं का पाठ कर दाद बटोरी ।