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राष्ट्र की प्रगति श्रेष्ठ संस्कारों से ही संभव
दशा नीमा धर्मशाला पर चल रहे पुष्टिमार्गीय धर्म संस्कार सेवा शिविर का समापन
इंदौर। एक संस्कारित समाज ही राष्ट्र की समृद्धि एवं यश पताका को ऊंचाई पर ले जा सकता है। व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र की प्रगति श्रेष्ठ संस्कारों से ही संभव है। संस्कार व्यक्ति के चरित्र की आधारशिला होते हैं। हमारे विकारों और बुरे विचारों को दूर कर जीवन को श्रेष्ठ चरित्र निर्माण की ओर प्रवृत्त करने में संस्कारों ही अहम भूमिका होती है।
ये दिव्य विचार हैं पद्मश्री एवं पद्मभूषण से अलंकृत, अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त आचार्य डाॅ. गोकुलोत्सव महाराज के, जो उन्हेांने मालगंज चैराहा स्थित दशा नीमा धर्मशाला पर चल रहे पुष्टिमार्गीय धर्म संस्कार सेवा शिविर के समापन अवसर पर मौजूद साधकों को आशीर्वचन देते हुए व्यक्त किए। शिविर में गोस्वामी बृजोत्सवजी भी उपस्थित थे।
तीन दिवसीय इस शिविर में बड़ी संख्या में महिलाओं एवं युवतियों सहित करीब एक हजार साधकों ने उत्साह के साथ भाग लिया। प्रारंभ में पूर्व पार्षद महेश नीमा ‘गामा’, मदनमोहन बिसाणी, डाॅ. डी.एल. गुप्ता, जयकृष्ण गुप्ता आदि ने महाराजश्री का स्वागत किया। संचालन जयकृष्ण नीमा ने किया। आचार्यश्री ने साधकों को उनकी दिनचर्या, पूजा पद्धति, ठाकुरजी की सेवा और दूसरों के साथ व्यवहार करने के अनेक सूत्र भी बताए।
उन्होंने कहा कि घर में कांटेदार कोई भी पौधा या वृक्ष नहीं लगाना चाहिए। कछुआ, सिंह, बिल्ली, कुत्ता और अन्य हिंसक नस्ल के पशुओं को भी घर में नहीं पालना चाहिए। भगवान की सेवा के लिए जाते समय अहंकार को छोड़कर जाना चाहिए और ठाकुरजी की सेवा के दौरान पंचामृत एवं जल से स्नान कराना चाहिए। श्रृंगार के पश्चात ठाकुरजी को शीशा भी दिखाया जाता है। पूजा के वक्त प्रतिमा का मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए। सेवा कोई सी भी हो, छोटी या बड़ी नहीं होती। सेवा राष्ट्र की हो या भगवान की, सेवा ही होती है।