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मतदान प्रतिशत बढ़ने में कारगर साबित हो सकते हैं यह उपाय – अतुल मलिकराम (राजनीतिक रणनीतिकार)
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लोकसभा चुनाव 2024 के पांच चरणों का मतदान पूरा हो चुका है, हालांकि अब तक हुई 429 सीटों पर औसत मतदान लगभग 57.44 प्रतिशत रहा है। खुद चुनाव आयोग 60 फीसदी से कम मतदान को चिंताजनक मानता है। ऐसे में उन कारणों पर बात करना जरुरी है जो लगातार मतदान के प्रति लोगों के कम होते रुझान की वजह हो सकते हैं या उन वजहों पर ध्यान देने की आवश्यकता है जो कम मतदान का कारण बन रहे हैं। इसके लिए सबसे पहले कुछ सवाल उठाने, उनके हल खोजने और कुछ सुविधाओं को सुलभ बनाने की आवश्यकता पर बात करना जरुरी है।
ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि देश का कोई भी वयस्क नागरिक कहीं से भी मतदान कर सके? क्यों न 75 वर्ष से ऊपर या बीमार व्यक्तियों के लिए एक मोबाइल पोलिंग बूथ की व्यवस्था हो? ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि 75 वर्ष से ऊपर या जरूरतमंद मतदाताओं को लाने-छोड़ने की व्यवस्था हो! ऐसे ही क्यों न पर्यटन या जरुरी कामों से सफर कर रहे मतदाता भी अपने मताधिकार का उपयोग करने में सक्षम हों? यूं भी एक चुनाव में हजारों करोड़ रुपये का खर्च आता है, फिर ऐसी कुछ व्यवस्थाओं में कुछ करोड़ और खर्च कर के यदि मतदान प्रतिशत बढ़ाया जा सकता है तो क्यों न इन उपायों पर गंभीरता से विचार किया जाये?
चुनाव आयोग के नियमानुसार आपको आपके निर्वाचन क्षेत्र में ही मतदान देने का अधिकार है। इसके लिए आपको मतदाता सूची में खुद को पंजीकृत करना जरुरी है। यहां तक तो ठीक है लेकिन क्यों न ऐसी कोई व्यवस्था हो जो ऐसे मतदाताओं को कवर करती हो जो किसी भी कारण, भले रोजगार हो, व्यवसाय हो, पर्यटन हो या मेडिकल इमरजेंसी, से अपने निर्वाचित क्षेत्र में मतदान वाले दिन उपलब्ध नहीं हैं।
इन मतदाताओं के लिए प्रत्येक शहर में किसी भी निजी या सरकारी भवन में ऐसी व्यवस्था की जा सकती है जिससे वह अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर सके। हम एक एडवांस टेक्नोलॉजी वाले युग में जी रहे हैं, जहाँ हर रोज नए इन्वेंशन देखने को मिलते हैं, वहां क्या ऐसा कुछ नहीं हो सकता कि एक टेक्नोलॉजी बेस्ड सिस्टम हो, जो इंदौर के किसी मतदाता जो यदि कानपुर में हो तो वह कानपुर में ही अपने मताधिकार का इस्तेमाल ऑनलाइन माध्यम से कर सके तथा इसका रिकॉर्ड इंदौर पोलिंग स्टेशन में दर्ज हो।
जाहिर तौर पर इसमें कुछ बेसिक दिक्कतें जरूर हो सकती हैं लेकिन इन्ही दिक्कतों के ऊपर कम वोटिंग प्रतिशत का हल ढूंढा जा सकता है। जिस प्रकार सेना, सुरक्षा बलों या चुनाव ड्यूटी में लगाए गए कर्मचारियों को अपने मतदान केंद्र पर जाने की जरूरत नहीं होती और वे अपने कार्य स्थल से ही बैलेट पेपर पर वोट डाल सकते हैं, ऐसी ही कुछ व्यवस्था उन लोगों के लिए भी हो जो विभिन्न कारणों से अपने पोलिंग स्टेशन पर उपलब्ध नहीं हो पाते।
दूसरी ओर वर्तमान लोकसभा चुनाव की ही बात करें तो इस बार 100 साल से ज्यादा के 2.18 लाख वोटर हैं। क्यों न ऐसे वोटर्स के लिए एक मोबाइल बूथ की व्यवस्था हो। हर शहर में कुछ ऐसे मोबाइल बूथ कार्यरत हों जो चिन्हित मतदाताओं के एरिया में मौजूद हों, उनके घरों के समीप हों, जिससे उन्हें अपने मत का उपयोग करने में आसानी हो। इसी प्रकार 75 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों को पोलिंग स्टेशन तक लाने-छोड़ने की व्यवस्था भी की जा सकती है। इसी प्रकार प्रत्येक पोलिंग स्टेशन पर मोबाइल हेल्थ केयर वैन, पीने के पानी आदि सुरक्षात्मक व्यवस्थाओं की पहल भी की जा सकती है।
अंत में हम यह भी नहीं कह सकते कि वोट देना नागरिकों का कर्त्तव्य है तो कुछ भी कैसी भी परिस्थिति का सामना कर के, वह अपने कर्त्तव्य का पालन करें। यदि कम होते वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी करनी है तो उपरोक्त कारणों और उनके उपायों पर भी गंभीरता से विचार किया जा सकता है, क्योंकि यदि ऐसे ही वोटिंग प्रतिशत कम होता गया तो इसे नागरिकों के लोकतंत्र से उठते विश्वास के रूप में भी देखा जायेगा, जो भारत जैसे विकासशील देश के लिए सम्मानजनक स्थिति नहीं है।