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लडख़ड़ाये कदमों से खूब सफर तय किया है हमने

नेहरू पार्क में अखंड संडे द्वारा दशहरा मिलन समारोह आयोजित किया गया जिसमें शहर के जाने माने कवि एवं शायरों ने गीत $गज़ल छंद मुक़्त कविताओं से सुहानी शाम को गुलज़ार किया ।
दिनेशचंद्र तिवारी ने टूटते परिवार और सिमटते रिश्तों पर अपनी पीड़ा को पंक्तियों के माध्यम से व्यक्त़ किया – रिश्तों के तार दिल से जुड़ते नहीं है / अपनों के लिए दिल धडक़ते नहीं है… रिश्तों में अब वो मिठास नहीं है… जि़ंदगी से अब मुलाकात नहीं होती है ।
अनूप सहर मुफलिसी की दास्तां को कुछ यूँ बयां किया – त्यौहार आये घर की दहलीजों पर खड़े… कैसे कहें आ जाओ मजबूरियां बोलती है… जि़ंदगी ने क्या क्या रंग दिखाये हमें… ये मेरे गीत गज़ल रूबाईयां बोलती है ।
हंसा मेहता ने माँ बाप से किनारा करने वाले बेटों को समझाईश देती पंक्तियाँ पढ़ी जिस पर भरपूर दाद मिली – इतने ऊँचे न उड़ो परिन्दों… की घर का रास्ता भी भूल जाओ… पंख लगे उड़ चले… भूल गऐ क्यूँ बचपन की यादें… माँ बाप को है तुमसे कितनी फर्यादे ।
श्याम बाघौरा – क्षणिक जीवन की यही कहानी… सदा रहे लोगों की जुबानी… जीवन छोटा हो यादगार हो… कर्म अच्छा हो लेकिन गीता सार हो । भ्रष्टाचार पर तंज़ करती उनकी रचना विक्रम बेताल और भ्रष्टाचार भी सराही गई । श्रुति मुखिया ने ढ़ाढ़स बंधाती पंक्तियां – है उम्मीद की संभल जाएंगे धीरे धीरे… लडख़ड़ाये कदमों से खूब सफर तय किया है हमने पर दाद बटोरी ।
हरमोहन नेमा , अशफाक हुसैन , राधेश्याम यादव , ओम उपाध्याय रमेश धवन , रामनारायण सोनी , भीमसिंह पंवार , वीरजी छाबड़ा, जितेन्द्र राज, दिनेश ज़रीया , अनिता सेरावत आदि ने भी काव्य पाठ किया। संचालन मुकेश इन्दौरी ने किया ।