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15 दिन के नवजात की जानलेवा संक्रमण से जंग; बारोड़ हॉस्पिटल के डॉक्टरों की मेहनत से मिला नया जीवन
![](https://indoremirror.in/wp-content/uploads/2025/02/barod-hospital-navjat.jpeg)
इंदौर, 15 फरवरी 2025। 15 दिन की अल्प आयु में, जब एक नवजात दुर्लभ संक्रमण से ग्रसित हो जाए और उसकी पूरी पीठ व पुट्ठे की खाल काली पड़ने लगे, फिर यह संक्रमण फैलकर पेट व नाभि तक पहुंच जाए—जहां से अम्बिलिकल आर्टरी और वेन के माध्यम से शरीर के आंतरिक वाइटल ऑर्गन्स को खतरा हो—तो ऐसे में डॉक्टर और परिवार के लिए उम्मीद खो देने के अलावा ज्यादा रास्ते नहीं बचते।
ऐसा ही एक दुर्लभ मामला इंदौर के बारोड़ अस्पताल में सामने आया, जहां 15 दिन के नवजात को सिनर्जिस्टिक बैक्टीरियल गैंग्रीन विद सेप्टीसीमिया नामक घातक संक्रमण ने अपनी चपेट में ले लिया। बच्चा मरणासन्न अवस्था में था और उसे डॉ. हिमांशु केलकर की देखरेख में भर्ती कराया गया। उसकी ब्लड काउंट 29,000 तक पहुंच गई थी, और वह सेप्टीसीमिया की गंभीर स्थिति में था। नवजात दूध भी नहीं पी पा रहा था, जिससे उसकी स्थिति और नाजुक हो गई थी।
बारोड़ अस्पताल के चीफ़ प्लास्टिक और रिकंस्ट्रक्टिव सर्जन डॉ अश्विनी दास ने बताया कि, “यह एक अत्यंत जटिल और चुनौतीपूर्ण मामला था, लेकिन टीम के समर्पण और परिवार के विश्वास ने इसे संभव बना दिया। सिनर्जिस्टिक बैक्टीरियल गैंग्रीन विद सेप्टीसीमिया नवजात शिशुओं के लिए बेहद खतरनाक संक्रमण है, जो अक्सर नाभि के जरिए शरीर में प्रवेश करता है। इसमें बैक्टीरिया की कई प्रजातियाँ मिलकर त्वचा और अंदरूनी ऊतकों को तेजी से नष्ट कर देती हैं, जिससे शिशु की त्वचा काली पड़ने लगती है और घाव गहरे हो जाते हैं। यदि संक्रमण रक्तप्रवाह तक पहुंच जाए, तो सेप्टीसीमिया हो सकता है, जिससे शिशु के अंग काम करना बंद कर सकते हैं और जीवन को खतरा हो सकता है। यह संक्रमण कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले शिशुओं में जल्दी फैलता है, इसलिए समय पर इलाज और गहन चिकित्सा देखभाल आवश्यक होती है।
नवजात की स्थिति बेहद गंभीर थी, लेकिन हमने सफलतापूर्वक संक्रमण को नियंत्रित कर उसे एक नया जीवन देने में सफलता पाई। यही नहीं, फ्लैप एडवांसमेंट और मेट्रिडर्म (कृत्रिम खाल) का उपयोग कर पीठ का पुनर्निर्माण किया गया। यह सिर्फ चिकित्सा की जीत नहीं, बल्कि एक परिवार की उम्मीदों का पुनर्जन्म है। बच्चे के पिता होटल में काम करते हैं, और सीमित संसाधनों के कारण लंबे इलाज का खर्च उठाना मुश्किल था।
ऐसे में, एक कंपनी ने 40,000 रुपये की कृत्रिम त्वचा (आर्टिफिशियल स्किन सब्सटीट्यूट), मेट्रिडर्म नि:शुल्क उपलब्ध कराई, जिसका दो बार उपयोग किया गया। दुनिया में पहली बार 15 दिन के नवजात पर डर्मल सब्सटीट्यूट का सफल उपयोग हुआ, जिससे अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा विशेषज्ञ भी उत्साहित हैं। यह किसी चमत्कार से कम नहीं कि नन्हा सार्थक अब एक योद्धा की तरह नया जीवन पा रहा है। हमें गर्व है कि इस दुर्लभ सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया, और यह मेडिकल जगत के लिए भी एक प्रेरणादायक उपलब्धि है।”
बारोड़ हॉस्पिटल के डायरेक्टर डॉ. संजय गोकुलदास ने इस सफल सर्जरी पर खुशी जाहिर करते हुए कहा, “हमें बेहद गर्व है कि हमने एक मासूम की जान बचाने में सफलता पाई। इस संक्रमण से लड़ने में हमारी डॉक्टरों की टीम का सामूहिक प्रयास वाकई काबिले तारीफ है। 15 दिन के सार्थक को सर्जरी के लिए एनेस्थीसिया देना जरूरी था, जिसमें एनेस्थीसिस्ट डॉ. चौहान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद, पीडियाट्रिशियन डॉ. हिमांशु केलकर, पीडियाट्रिक आईसीयू की इंटेंसिविस्ट डॉ. ब्लूम वर्मा, और आईसीयू टीम ने तुरंत इलाज शुरू किया। जब सार्थक की स्थिति गंभीर हो गई, तब प्लास्टिक और रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी विशेषज्ञ डॉ. अश्विनी दास ने इस चुनौतीपूर्ण केस को अपने हाथ में लिया और पूरी निष्ठा से इसका सामना किया। आज, सार्थक सवा महीने का 4 किलो का स्वस्थ बालक है।”
डॉ. संजय गोकुलदास ने आगे कहा, “मैं पूरी टीम को बधाई देता हूं कि उनके अथक प्रयासों से अब यह नन्हा योद्धा, सार्थक, नई जिंदगी की ओर बढ़ रहा है। परिवार के सहयोग और डॉक्टरों के समर्पण ने इस सफलता को संभव बनाया है।”