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नगर निगम ने शिक्षक दिवस पर किया 51 शिक्षकों का सम्मान
इन्दौर। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस के अवसर नगर निगम द्वारा रविन्द्र नाटयगृह में श्री वैष्णव वाणिज्य महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. श्री प्रद्युम्न यशवंत मिश्रा के मुख्य आतिथ्य व महापौर श्रीमती मालिनी गौड की अध्यक्षता में 51 शिक्षको काे शॉल, श्रीफल, प्रशस्ति पत्र, मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर विधायक सुश्री उषा ठाकुर, सभापति श्री अजयसिंह नरूका, महापौर परिषद सदस्य संतोष गौर, बलराम वर्मा, अश्विन शुक्ल, श्रीमती शोभा रामदास गर्ग, पार्षद भगवानसिंह चैहान, राजेश चैहान, भरत पारख, दीपक जैन, चंगीराम यादव, श्रीमती कंचन गिदवानी, श्रीमती चंदा वाजपेयी, जगदीश धनेरिया, जिला शिक्षा अधिकारी अक्षय राठौर, पूर्व पार्षद श्रीमती पदमा भौजे, राजेश सेानी, उपायुक्त एकसे सिंहा सहित बडी संख्या में शिक्षकगण व उनके परिवारजन उपस्थित थे।
महापौर परिषद सदस्य श्री संतोषसिंह गौर द्वारा स्वागत भाषण दिया गया। संचालन श्रीमती लीली डावर द्वारा किया गया।
मुख्य अतिथि डॉ. मिश्र ने इस अवसर पर कहा कि झरना तालाब को पानी देता है, परंतु तालाब झरने को क्या देगा. इसी प्रकार से जिस गुरू ने शिष्य को बोलना सिखाया, पढ़ना-लिखना सिखाया, सत्य-असत्य की पहचान बताई, ज्ञान-संस्कार दिया, ऐसे गुरू को हम क्या दे सकते है। पृथ्वी पर ऐसा कोई द्रव्य (रूपया, पेसा, सोना-हीरा, मोती) नहीं जो शिष्य गुरू को देकर उसका सम्मान कर सकता है, क्योंकि गुरू तो अपने शिष्य को शिक्षा का वह अमुल्य संस्कार देता है उसकी पूर्ति कोई शिष्य नहीं कर सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि गुरू कभी शिष्य से कुछ नही लेता है, वह तो सिर्फ ज्ञान व अपना आर्शिवाद देता है। पूर्व शिक्षामंत्री ब्रहमलीन श्री लक्ष्मणसिंह गौड दादा मेरे शिष्य रहे है, उन्होने शिक्षामंत्री रहते हुए, शिक्षा जगत में बहुत ही सराहनीय कार्य किये है।
डॉ. मिश्र ने कहा कि आज शिक्षक दिवस है, आज हम सभी शिक्षको के सम्मान के लिये यहां एकत्रित हुए है, पर मैं पुछना चाहता हॅू कि आज सम्मानित कौन हो रहा है, शिक्षक या जो सम्मान करने वाला है वह। गुरू तो हमेशा से पुज्यनीय रहे है और रहेगे, वह तो इस संसार में अपने शिष्य को वह शिक्षा देते है जिससे की उनका जीवन तो धन्य होता ही है, साथ ही देश व जगत का भी विकास करता है। आज शिक्षक दिवस पर गुरू नही बल्कि हम सम्मानित हो रहे है, जो कि ऐसे गुरू के दर्शन कर उन्हे पुज रहे है।
इस अवसर पर महापौर श्रीमती गौड ने कहा कि गुरू-गोविंद दोनो खडे, इनमें सबसे पहले पुज्यनीय गुरू है, गुरू ही ब्रहमा है, गुरू ही विष्णु है, गुरू ही देव है, गुरू ही साक्षात परब्रहमा है। गुरू हमेशा ही पुज्यनीय है। जो संस्कार गुरू देते है, जो शिक्षा गुरू देते है, वही लेकर शिष्य इस जगत में अपना व अपने गुरू का नाम रोशन करता है। महापौर जी ने कहा कि डॉ. मिश्र द्वारा प्रतियोगिता परीक्षा हेतु निगम द्वारा केन्द्र खोलने की मांग को स्वीकराते हुए कहा कि यह बहुत ही अच्छी पहल है, हम इस पर जरूर विचार करेगे।
महापौर श्रीमती गौड ने कहा कि इंदौर स्वच्छता में दो बार देश में नंबर वन स्वच्छ शहर बना है, इसमें सबसे बडा योगदान शहर के जागरूक नागरिको के साथ-साथ आप सभी का भी रहा है, आज सम्मानित होने वाले 51 शिक्षको को में प्रणाम करती हॅू व आपको सम्मानित कर मैं गौरांवित महसुस कर रही हॅू।
इनका किया सम्मान
उपायुक्त एसके सिंहा ने बताया कि आज शिक्षक दिवस के अवसर पर प्राचार्य हीरालाल खुशाल, एनके मालवीय, व्याख्याता श्रीमती सीमा श्रीवास्तव, भुषण सराफ, श्रीमती नमिता भोपालकर, श्रीमती अर्चना शर्मा, डॉ. अनिल चैरे, उच्च शिक्षक श्रेणी के श्रीमती भारती देहाडराय, श्रीमती कमला शर्मा, श्रीमती कंचन विचुरकर, श्रीमती पदमा चतुर्वेदी, श्रीमती प्रेमलता बेतब, प्रधान पाठक राजेश जोशी, श्रीमती उषा पटेल, सहायक शिक्षक श्रीमती शांता मालवीय, श्रीमती सरस्वती नायर, श्रीमती स्नेहलता शर्मा, श्रीमती माधुरी कुंडल, दिनेश कुमार काकरेचा, डॉ. सरोज चैधरी, श्रीमती उर्मिला शर्मा, श्रीमती वैशाली अवस्थी, श्रीमती शोभा गांवशिन्दे, श्रीमती मंजु तिवारी, श्रीमती दीपाली लोकरे, श्रीमती रेखा गोलवकर, श्रीमती सुमन गोडाले, श्रीमती राजकुमारी मईया, श्रीमती कुसुम पाण्डे, श्रीमती रेखा चैरसिया, श्री जयदीप पंचोली, वरिष्ठ अध्यापक परमानंद पाटीदार, अध्यापक श्रीमती भावना शर्मा, सहायक अध्यापक श्रीमती सीमा नाईक, श्रीमती संगीता जोशी, श्रीमती शोभा शर्मा, श्रीमती रमा दुबे, चंद्रशेखर सुनहरे, श्री शैलेन्द् धानापुने, श्रीमती नरगीस मंसुरी, व्यायम शिक्षक श्री प्रकाश गौड, श्रीमती अनिता भारती, अध्यापक वर्ग 2 श्रीमती स्वाति शर्मा, श्रीमती प्रमिला जैन, प्राचार्य डॉ. एसएस गोयल, श्री किशोर गुप्ता, डॉ. प्रकाश चैधरी, श्री शम्भुदयाल शुक्ला, श्री सत्यनारायण कश्यप को अतिथियो द्वारा शॉल, श्रीफल, प्रशिस्त पत्र, मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया। शिक्षक सम्मान समारोह के पश्चात सभी के स्वल्पाहार की भी व्यवस्था रखी गई थी।
प्रकाशन हेतु
[शिक्षक दिवस – ५ सितम्बर]
इं. राजेश पाठक
३११,डीके सुरभि ,नेहरु नगर ,
भोपाल मप्र मो.९८२६३३७०११
भारतीय मूल चेतना के धर्म में ही बने रहने की प्रेरणा निर्मित करी.
भारत रत्न भीमराव अम्बेडकर जब युवा थे, वे शाम के वक्त मुंबई के चर्नी रोड गार्डन [ अब सा.का. पाटिल गार्डन] जाकर पढाई किया करते थे. इसी बाग़ में तब के विल्सन हाई स्कूल के ब्राह्मण प्रधानाध्यापक कृष्णाजी अर्जुन कैलुस्कर भी अक्सर घूमने जाया करते थे. जिस मनोयोग से भीम राव अध्ययन में लीन रहा करते थे, उस पर कैलुस्कर की अक्सर नज़र टिक जाया करती थी. वे भीमराव से परिचय करने से स्वयं को न रोक सके. परिचय हुआ, और धीरे-धीरे उनके बीच एक गुरु और शिष्य के भांति गहन आत्मीय संबधों ने आकार लेना शुरू कर दिया. बाबासाहब बताते हैं-‘ उनके साथ हुआ संभाषण मुझे विचारप्रवृत करता था.’ बाबासाहब जिस महार जाति से थे, उसमें किसी का पढ़-लिखकर निकल जाना उस समय बढ़ी बात हुआ करती थी. ऐसे में सन १९०७ में जब उन्होंने ने अपनी जाति में पहले विद्यार्थी के रूप में मेट्रिक पास हो कर उसका गौरव बढ़ाया, तो लोगों नें भी उनका पूरे जौर-शौर से सम्मान करने का निश्चय किया. इस आयोजन के लिए भीमराव ने जिसे प्रमुख अतिथि के रूप में चुना वो कोई और नहीं बल्कि कैलुस्कर ही थे. इस अवसर पर उन्होंने भीमराव को अपनी लिखी एक पुस्तक भेंट करी जो कि गौतम बुद्ध के जीवन पर लिखी गयी थी. भीमराव ने समय न गवांते हुए उस पुस्तक को घर जाकर उसी दिन पढ़ डाला. जिस गहरी उलझन को लेकर उनका जीवन अब तक संतप्त था, इस पुस्तक के माध्यम से कैलुस्कर ने एक गुरु के रूप में उन्हें मार्ग दिखाने का काम किया. दरअसल बाबा साहब का जीवन बचपन से ही जाति अवमाना से त्रस्त जीवन रहा था, जिसके कारण उन्हें ये लगने लगा था कि वो शायद ज्यादा दिनों हिन्दू धर्म में बने नहीं रह पायेंगे. आत्मीय सम्बन्ध होने के कारण ये बात कैलुस्कर से छुपी नहीं थी. और इस प्रकार उन्होंने बोद्ध-धर्म के बीज बाबा साहब के मन में बो कर हिन्दू-धर्म को छोड़ने के बाद भी भारतीय मूल चेतना के धर्म में ही बने रहने की प्रेरणा उनके अंदर निर्मित करी.
लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में पी.एच.डी. करनेवाले पहले भारतीय होने का जिन्हें गौरव प्राप्त हुआ वो थे बाबा साहब अम्बेडकर. इंग्लैंड भेजने में अम्बेडकर की जिन्होंने आर्थिक सहायता करी वो थे बड़ोदा रियासत के राजा सयाजी राव गायकवाड़. और सयाजी को इस मानवता के कार्य के लिए प्रेरित करने वाले भी कोई और नहीं बल्कि ब्राह्मण शिक्षक कृष्णाजी अर्जुन कैलुस्कर ही थे. इस प्रकार केवल वैचारिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि कृति के स्तर पर भी जहां भी और जब भी जरुरत पड़ी बाबासाहब को उनका सहयोग मिलता रहा.
गुरु-शिष्य के मध्य परस्पर आत्मीय प्रेम का ही ये परिणाम है कि आगे चल कर जब-जब उनको हिन्दू धर्म से अलग करने के प्रयत्न हुए वो सब निष्फल ही साबित हुए. बाबा साहब अम्बेडकर का कहना था कि-‘ ईसाई हो जाने से भेद प्रिय मनोवृति नष्ट नहीं होगी . जो ईसाई हुए हैं , उनमें ब्राह्मण ईसाई ,मराठा ईसाई, महार, मांग, भंगी ईसाई जैसे भेद कायम हैं. हिन्दू समाज की तरह ईसाई समाज भी जतिग्रस्त है. जो धर्म देश की प्राचीन संस्कृति को खतरा उत्पन करेगा अथवा अस्पृश्यों को अराष्ट्रीय बनाएगा, ऐसे धर्म को मैं कभी भी स्वीकार नहीं करूँगा. क्यूंकि इस देश के इतिहास में मैं अपना उल्लेख विध्वंशक के नाते करवाने का इच्छुक नहीं हूँ.’[डॉ.अम्बेडकर और सामाजिक क्रांति की यात्रा; पृष्ठ-२७८] कहना पड़ेगा की बाबा साहब का तब का आकलन गलत नहीं था. इस सन्दर्भ में Tamilnadu Untouchability Eradication Front [तमिलनाडु अछूत निवारण मोर्चा] की वो रिपोर्ट देखने के काबिल है जो कि २०१८ में प्रकाशित हुई थी. रिपोर्ट बताती है कि दलित इसाईयों के लिए गाँवों में अलग चर्च और कब्रिस्तान मिलना आम है. गिरजाघर के प्रशासन, पादरी के पद, व्यवसायिक -शैक्षणिक गतिवीधीयों को लेकर वन्नियार और नादार उच्च जाति के लोगों के हांथों दलित भेदभाव से पीड़ित हैं . कई मामलों में तो उन्हें सामाजिक बहिष्कार तक झेलना पड़ता है.
जहां तक सवाल बाबासाहब का इस्लाम के प्रति दृष्टिकोण का है, इसका अनुमान विभाजन को लेकर उनके इस कथन से लगाया जा सकता है कि-‘मै पाकिस्तान में फंसे हुए दलित समाज से कहना चाहता हूँ कि उन्हें जो मिले, उस मार्ग व साधन से हिंदुस्तान आ जाना चाहिए. पाकिस्तान अथवा हैदराबाद की निजामी रियासत के मुसलमान अथवा मुस्लिम लीग पर विश्वास रखने से दलित समाज का नाश होगा.’ [[डॉ.अम्बेडकर…;पृष्ठ १४४]
बाबा साहब शिक्षा को ‘शेरनी का दूध’ कहा करते थे. उन्होंने जान लिया था कि यदि दलित समाज में सिर उठा कर जीने की भावना निर्मित करना हो तो ये उन्हें शिक्षित करके ही संभव है. इसलिए उन्होंने ‘ पीपुल्स एजुकेशन् सोसाइटी’ की स्थापना कर सिद्धार्थ महाविद्यालय प्रारंभ किया. इसके संस्थापक सदस्यों में एस.सी.जोशी,वी.जी. जोशी, बेरिस्टर समर्थ,मुले और चित्रे जैसे ब्राह्मण लोग थे. अपनी जाति के कारण सामाजिक अवमानना और दूसरी और अस्पृश्यता को मानवता पर कलंक मानने वाले उच्च जातिय लोगों के एक वर्ग द्वारा समय पर समय मिले सहयोग और प्रेम के इस अनुभव से गुजरने पर निकले निष्कर्ष के आधार पर उनका मत था कि-‘ हिन्दू संगठन राष्ट्रीय कार्य है. वह स्वराज से भी अधिक महत्त्व का है . स्वराज के रक्षण से भी स्वराज के हिन्दुओं का संरक्षण करना अधिक महत्त्व का है.हिन्दुओं में सामर्थ्य नहीं होगा तो स्वराज का रूपांतरण दासता में हो जाएगा.’