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इंदौर के 70 लोगों ने मिजोरम जाकर जाने 40 हजार शरणार्थियों के हाल
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शहरवासियों ने सीजेआई, गृहमंत्री और पीएम मोदी तक पत्रों के माध्यम से पहुंचाई बात
इंदौर. ब्रू (रियांग) जनजाति के 40 हजार वैष्णव हिन्दू परिवार अपने ही देश में शरणार्थी के रूप में रहने को मजबूर हैं। एक ओर जहां कश्मीरी पंडितों के लिए देशभर में अभियान चलाए जा रहे हैं वहीं इन 40 हजार परिवारों के दर्द के सरकार पिछले 20 साल से अनदेखा कर रही है। हालत यह है कि इन परिवारों को नदी, नालों के पास, कच्ची जमीन पर बुरे हालात में रहना पड़ रहा है।
सालों पहले हुए जातीय संघर्ष के बाद इन 40 हजार परिवारों को मिजोरम छोडऩा पड़ा था। वहां इनके घर, खेत और जमीनों पर कब्जा कर लिया गया और इन्हें मिजोरम से बाहर जाने पर मजबूर किया गया। तब से ये लोग दुर्गम हालात में जीवन जीने को मजबूर हैं। इनकी मांग है कि सरकार इन्हें सुरक्ष की गारंटी दे और रहने और खेती करने के लिए जमीन और मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराए।
सुप्रीम कोर्ट में इनके हालात पर कड़ी नाराजगी जता चुका है लेकिन इसके बावजूद सरकार इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दे रही है। ब्रू जनजाति के लोगों की इन्हीं तकलीफों को महसूस करने के लिए इंदौर के 70 लोग मिजोरम यात्रा पर गए और इंदौर लौटकर उन्होंने अपने अनुभव शेयर किए।
अब उनके अनुभवों को पत्रों के माध्यम से सीजेआई रंजन गोगोई, गृहमंत्री अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी तक पहुंचाया जा रहा है। रविवार को पंजाब अरोड़वंशीय धर्मशाला में इसी बाबद पत्र लेखन का कार्यक्रम आयोजित किया गया और इंदौर से वहां गए लोगों ने अपने अनुभव साझा किए।
हमारे नागरिक हमारे ही देश में शरणार्थी
मिजोरम से लौटे प्रवीण शर्मा ने बताया कि वहां के हालात इतने खराब हैं कि जीना भी मुश्किल है। जो लोग सालों पहले सुखी जीवन व्यतीत कर रहे थे आज उनका सबकुछ छिन गया है। सबसे बड़ी परेशानी यह है कि ये लोग अपनी बात भी सरकार और सुप्रीम कोर्ट तक नहीं पहुंचा पा रहे। इसका सबसे बड़ा कारण है इनका आदिवासी होना और दिल्ली जैसी जगहों पर इनके लोगों का न होना। सालों तक तो इनकी परेशानी सामने ही नहीं आई। स्थानीय नेता इन्हें मदद का आश्वासन देते रहते हैं लेकिन वे भी सरकार तक इनके हालात नहीं पहुंचा पाते।
शिक्षा, स्वास्थ्य और भोजन तक नहीं
श्याम सिलावट ने बताया इनके बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे, इनके घरों में खाने को नहीं है और ये लोग भीख मांगकर जीवन यापन करने को मजबूर हैं। देश के ही लोगों के साथ अगर ऐसा व्यवहार होगा तो ये कैसे जीवित रह पाएंगे। हमें इनके बारे में सोचना चाहिए और इनकी समस्याओं का जल्द ही हल निकालना चाहिए।
आधार कार्ड और कोई प्रमाण पत्र तक नहीं
अनिल टांक ने बताया सुप्रीम कोर्ट लगातार सरकार को इस मामले में हल निकालने का आदेश दे रहा है लेकिन इन लोगों की समुचित मांगों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ये बेहद शर्मनाक है कि हमारे ही देश के नागरिक हमारे ही देश में शरणार्थी बनकर रह रहे हैं। इनके पास न तो आधार कार्ड है, न राशन कार्ड है न ही कोई और प्रमाण पत्र। ये इतना भी साबित नहीं कर सकते कि ये भारत के नागरिक हैं।