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ड्रिप इरीगेशन: बागवानी में फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए आशाजनक तकनीक
श्री प्रभात चतुर्वेदी, सीईओ, नेटाफिम एग्रीकल्चरल फाइनेंसिंग एजेंसी प्रा. लि. (NAFA)
बागवानी में अलग-अलग तरह के फलों से लेकर बागानों में उगाई जाने वाली फसलों और फूलों तक की खेती शामिल है। भारत के कुल कृषि उत्पादन में इस क्षेत्र का योगदान तीस प्रतिशत से ज्यादा है। पिछले कुछ सालों के दौरान इस क्षेत्र की लोकप्रियता काफी बढ़ गई है, क्योंकि खेती तथा खेती से जुड़े क्षेत्रों के GVA में इसकी हिस्सेदारी लगातार बढ़ती ही जा रही है। भारतीय बागवानी का दायरा हर साल २.६% से ज्यादा की दर से बढ़ रहा है, जबकि पिछले एक दशक के दौरान इस क्षेत्र के सालाना उत्पादन में ४.८% से अधिक की बढ़ोतरी हुई है।
बागवानी ने किसान की आय में सुधार करने में अपनी विश्वसनीयता स्थापित की है और बड़े पैमाने पर निर्यात के साथ-साथ रोजगार भी उपलब्ध कराया है। आज इसकी वजह से कृषि क्षेत्र का काफी विकास हो रहा है। बागवानी फसलों की खेती में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, जिसके चलते भारत पूरी दुनिया में फलों एवं सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया है।
व्यावसायिक बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप, आज भारत ज्यादा उपज वाली बागवानी फसलों की कई किस्मों का उत्पादन कर रहा है। इसके अलावा, भारत में फलों, सब्जियों और फूलों के भंडारण तथा उनकी मार्केटिंग के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया जा रहा है। बेहतरीन गुणवत्ता वाले फलों और सब्जियों की मांग लगातार बढ़ रही है, जिसे पूरा करने के लिए भारत में ‘निर्यात के लिए फसल उत्पादन’ में तेजी आई है। ‘निर्यात के लिए फसल उत्पादन’ को और बेहतर बनाने हेतु, इस क्षेत्र में टेक्नोलॉजी में सुधार करने और दुनिया के बाजारों में बागवानी फसलों के लिए आपसी प्रतिस्पर्धा को बेहतर बनाने के उपाय किए जा रहे हैं।
भारत बागवानी फसलों के सबसे बड़े उत्पादक देशों में से एक है, लेकिन इसके बावजूद किसानों को पैदावार बढ़ाने के लिए कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड रहा है। छोटे आकार वाले खेत भारतीय बागवानी क्षेत्र में पैदावार बढ़ाने के लिए सर्व प्रमुख है। इसके अलावा, भारत में बागवानी फसलों के सिर्फ दो प्रतिशत हिस्से का कोल्ड स्टोरेज में भंडारण हो पाता है, जबकि चीन १५% और यूरोप ८५% उत्पादों का कोल्ड स्टोरेज में भंडारण करता है।
कोविड-19 महामारी की वजह से बागवानी किसानों के लिए सप्लाई-चेन लगभग बंद हो गया है। किसानों के पास पर्याप्त उत्पादन होने के बावजूद, लॉजिस्टिक्स से जुड़ी परेशानियों की वजह से फलों एवं सब्जियों को शहर के ग्राहकों तक पहुंचाना कठिन हो गया है। हालांकि, प्रगतिशील किसानों / FPOs ने डिजिटल तकनीक की मदद से अलग-अलग तरह के ऐप और डिलीवरी के विभिन्न साधनों का लाभ उठाया है, और उत्पादों को सीधे शहरी ग्राहकों तक पहुंचने का प्रयास किया है। फिर भी, दूरदराज के इलाकों में रहने वाले किसानों को अभी भी इस ‘न्यू नॉर्मल‘ और नई टेक्नोलॉजी का सही लाभ नहीं मिल पाया है। कोविड-19 महामारी ने ज्यादातर लोगों को डिजिटल तकनीक अपनाने या इसका उपयोग जारी रखने के लिए प्रेरित किया है। डिजिटल तकनीक की मदद से आपूर्ति और मांग के बीच की चुनौतियों को दूर किया जा सकेगा, साथ ही किसानों के उत्पादों की पिकअप एवं डिलीवरी बेहद आसान हो जाएगी और भविष्य में इसे और भी सुविधाजनक बनाया जा सकेगा।
इस मामले में हमें एक और अहम बात पर ध्यान देना होगा, यानी कि भविष्य में बागवानी फसलों के लगातार उत्पादन के लिए पानी और न्यूट्रिएंट्स के सही ढंग से इस्तेमाल के साथ-साथ एग्रोकेमिकल्स के संतुलित उपयोग की अहमियत सबसे अधिक होगी। इसके लिए टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में नए-नए इनोवेशन की आवश्यकता है। ड्रिप इरीगेशन भी ऐसी ही एक तकनीक है, और बागवानी फसलों के उत्पादन को बेहतर बनाने के लिए इस तकनीक को अपनाना बेहद जरूरी है।
आज यह साबित हो चुका है कि ड्रिप इरीगेशन की मदद से पैदावार को बढ़ाया जा सकता है, क्योंकि इसमें पानी और फर्टिलाइजर्स ज़रूरत अनुसार इस्तेमाल होता है। वर्ष २०२० के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, पानी की जरुरत में लगभग ५०% की कमी आयी है, साथ ही फसल की पैदावार भी काफी बढ़ गई है। इन सफल परिणामों को देखते हुए, सरकार ने हर साल 2 मिलियन हेक्टेयर खेती की जमीन को ड्रिप इरीगेशन से जोड़ने का लक्ष्य रखा है।
वर्तमान में बागवानी क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि किसानों को पर्याप्त मात्रा में और सही समय पर पानी नहीं मिल पाता है। पिछले कुछ सालों के दौरान, हमने भारत के कई इलाकों में पानी की बहुत ज्यादा कमी को देखा है। इसलिए, हमें माइक्रो-इरीगेशन को अपनाने पर ज्यादा ध्यान देना होगा। भारतीय किसान ऐसी किसी भी तकनीक को अपनाने के लिए तैयार हैं, जिससे उनकी आमदनी निश्चित हो सके और उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो सके। दोनों मामलों में, ड्रिप इरीगेशन सबसे बेहतर तकनीक साबित हुई है। ड्रिप इरीगेशन के बड़े फायदे हैं जो सीधे तौर पर नजर आते हैं, लिहाजा इसके बड़े पैमाने पर व्यापक प्रचार की जरूरत है।
पैदावार को बढ़ाने के अलावा, ड्रिप इरीगेशन से खेती की लागत भी कम हो जाती है और फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है। इस विषय पर कईं अध्ययन कीए जा चुकें है, जिसमें किसानों को ड्रिप इरीगेशन से मिलने वाले फायदों के बारे में बताया गया है। सरकार द्वारा प्रधानमंत्री कृषि सिचाई योजना (PMKSY) के तहत ऐसी ही एक केस-स्टडी की गई थी, जिसमें निम्नलिखित फायदों के बारे में बताया गया है:
- पानी के कुशलतापूर्वक उपयोग की क्षमता में लगभग ८० – ९०% की वृद्धि
- बिजली की लागत में प्रति हेक्टेयर ~३०% की बचत (बिजली के उपयोग के समय में बचत के कारण)
- फर्टिलाइजर्स की खपत में ३०% की बचत
- पैदावार में लगभग ५०% की बढ़ोतरी
- इन सभी फायदों के चलते किसान की आय में ४०% से अधिक की वृद्धि
कृषि क्षेत्र, खास तौर पर बागवानी क्षेत्र हमेशा किस्मत पर निर्भर रहा है और जलवायु में बदलाव के कारण ऐसी समस्याएं और बढ़ रही हैं। भारतीय किसान देश के अलग-अलग हिस्सों में असमान बारिश, सूखा, बाढ़ और इन सब की वजह से पानी से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहे हैं। इसके चलते किसानों के लिए बागवानी को जलवायु के अनुकूल और फायदेमंद बनाना बेहद कठिन हो गया है। इसे देखते हुए, माइक्रो-इरीगेशन के तरीकों को अपनाना आज समय की मांग बन चुकी है। इसकी मदद से देश में पानी की कमी को दूर किया जा सकता है, साथ ही फसल की पैदावार को बढ़ाया जा सकता है।
सरकार लोगों को इसके फायदों के बारे में लगातार जागरूक कर रही है। सरकार ने भारतीय किसानों को नई तकनीकों को अपनाने और अपने व्यवसाय में मशीनों के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया है। हालांकि, किसानों को समय पर आर्थिक सहायता नहीं मिल पाना भी माइक्रो-इरीगेशन के तरीकों को अपनाने में एक बड़ी बाधा है। ज्यादातर वित्तीय संस्थान उन्हें जरूरत के अनुसार कारोबार के लिए पूंजी उपलब्ध कराते हैं। लिहाजा, कारोबार को बेहतर बनाने के लिए किसानों को ऑटोमेटेड टेक्नोलॉजी पर होने वाले खर्च में मदद करना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। किसानों की आय को दोगुना करना तथा बागवानी फसलों की पैदावार को बढ़ाना तभी संभव हो सकता है, जब खेती में तकनीक के साथ-साथ वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल किया जाए, तथा किसानों को समय-समय पर एवं पर्याप्त मात्रा में आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाए।