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महात्मा और परमात्मा से भी बड़ा है मां का दर्जा: जिनमणिप्रभ सूरीश्वरजी
इन्दौर। संतान को चरित्रवान, गुणवान बनाने में सर्वाधिक योगदान माँ का होता है। एक ओर वह संतान को लाड़ प्यार से सुरक्षा व शक्ति प्रदान करती है, तो दूसरी ओर डांट डपटकर उसे पतन के मार्ग पर जाने से रोकती है। संतो महापुरुषों की जीवनी सुनाकर माँ सन्तान में महान व्यक्ति बनने के संस्कार देती है। वह संतान को सामाजिक मर्यादाओ का ज्ञान कराती तथा उच्च विचारों का महत्व बताती है। इसलिये माँ है तो स्वर्ग है, खिला खिला हृदय है। जीवन मे महात्मा औऱ परमात्मा के पहले जिसका दर्जा माना गया है वह है माँ का दर्जा।
यह प्रेरक उदबोधन एरोड्रम रोड स्थित महावीर बाग में खरतर सहस्राब्दी पर्व के तहत श्री श्वेताम्बर खरतरगच्छ श्रीसंघ इंदौर के तत्वावधान में आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन श्रंृखला में जिनमणिप्रभ सूरीश्वरजी महाराज ने व्यक्त किए। वे रविवार को हमारी वंदना माँ के चरणों में विषय पर धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। आचार्यश्री ने कहा कि जीवन में माँ, महात्मा और परमात्मा का साथ बहुत जरूरी है। बचपन मे माँ हमे उंगली पकडकर चलना सिखाती है, जवानी में महात्मा हमे जीवन की राह बताते है और बुढ़ापे में परमात्मा हमे मुक्ति के मार्ग पर ले जाते हैं।
कर्तव्य की नही कृतज्ञता की बात करें
आचार्यश्री ने कर्तव्य और कृतज्ञता में अंतर को समझाते हुए कहा कि माता पिता के प्रति कर्तव्य की नही कृतज्ञता की बात करें। कर्तव्य दुसरो के साथ होता है अपनो के साथ कृतज्ञता का भाव होता है। कर्तव्य में कहीं न कहीं सौदे की बात आती है यानी व्यवहार के बदले व्यवहार की बात आती है। इसके अलावा कृतज्ञता में कभी सौदा नही परिलक्चित होता है खासकर माँ के प्रति तो कदापि नही। माँ पुत्र को पालने के पीछे लालच नही रखती वह केवल आशा रखती है और आशा रखना लालच नही होता। हम पर माँ के किये उपकार को हम जीवन भर ना तो भुला सकते है और ना ही उतार सकते है।
समर्पण में इशारा भी आदेश होता है
आचार्यश्री ने धर्मसभा में उपस्थित श्रावक श्राविकाओं का आह्वान किया कि आओ आज हम सब माँ के चरणों मे हृदय का समर्पण करें, आखो के आंसू से माँ प्रच्छालन करे ओर माँ के प्रति कृतज्ञता के तथा समर्पण के भाव प्रकट करें। क्योंकि जहां समर्पण होता है वहाँ स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है। कर्ता भाव की समाप्ति ही समर्पण होता है। इस धरा पर माँ के स्नेह व त्याग का दूसरा उदाहरण मिलना सम्भव नही है। हमारे शास्त्रों में भी माँ को देवताओ के समान पूजनीय बताया गया है। रविवार को महावीर बाग में संजय छांजेड़, छगनराज हुंडिया, डूगरचंद हुंडिया, राजेश चौरडिय़ा, मनोहर सुराणा, पारस राखेचा, मोहनसिंह लाल, धर्मेंद्र मेहता, राजेंद्र नाहर सहित हजारं की संख्या में श्रावक-श्राविकाएं मौजूद थे।
सौभाग्य कल्पतरु पर्व प्रारम्भ
श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ श्रीसंघ एवं चातुर्मास समिति के प्रचार सचिव संजय छांजेड़ एवं चातुर्मास समिति संयोजक छगनराज हुंडिया एवं डूंगरचंद हुंडिया ने जानकारी देते हुए बताया कि आज से महावीर बाग में सौभाग्य कल्पतरु पर्व की शुरुआत भी हुई। इसके अलावा 28 से 30 जुलाई तक जारी स्वाध्याय शिविर में भी श्रावक श्राविकाएं प्रवचन व अन्य धार्मिक क्रियाओ का प्रशिक्षण लाभ ले रहे है।