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सांसारिक जीवन के भ्रम को समाप्त करता है चातुर्मास: मुक्तिप्रभ सागर
सोमवार को कंचनबाग में हुई धर्मसभा में सैकड़ों की संख्या में समग्र जैन समाज के बंधुओं ने लिया धर्मसभा का लाभ, आचार्य श्री ने कहा वातावरण के अनुसार हमारे भाव बदल जाते हैं
इन्दौर 30 जुलाई। संसार में लोग भ्रम में जीवन जीते हैं। जब भ्रम हट जाता है तो सच सामने आता है कि सांसारिक पदार्थों में सुख नहीं होता। जैसे एक बच्चा लकड़ी के ऊपर बैठ कर उसे ‘चल मेरे घोड़े.. टिक..टिक कहता है और खुश होता है। उसे देखकर हम भी खुश होते है। इसी प्रकार सांसारिक व्यक्ति धन-वैभव को अपना मानकर भ्रम में जीवन जीता है। इन भ्रम से निकलने और शाश्वत सत्य की पहचान करने के लिए चार्तुमास है। सांसारिक जीवन के भ्रम को समाप्त करने के लिए चार्तुमास है। चार्तुमास में साधना, आराधना, तब करें। उक्त विचार खरतरगच्छ गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभ सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य पूज्य मुनिराज मुक्तिप्रभ सागरजी ने सोमवार को कंचनबाग स्थित श्री नीलवर्णा पाŸवनाथ जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक ट्रस्ट में चार्तुमास धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
मुनिराज मनीषप्रभ सागरजी म.सा. ने भाव, विचार और आचार पर व्याख्यान देते हुए कहा कि यदि आपके विचार शुद्ध है भाव शुद्ध है तो आचार स्वत: शुद्ध हो जाता है, लेकिन आचार शुद्ध है और भाव अशुद्ध तो फिर गड़बड़ हो जाती है। आचार की शुद्धथा वाले विचार ज्यादा देर टिक नहीं पाते। उन्होंने कहा कि परमात्मा की पूजा कर आचार, विचार, व्यवहार बदल सकते हैं। कई बार हमें सामने की वस्तु दिखाई नहीं देती। कई बार ऐसा लगता है कि व्यक्ति कुछ कर नहीं रहा है, लेकिन करता बहुत कुछ है।
इसी प्रकार कई बार ऐसा लगता है कि बहुत कुछ कर रहा है, लेकिन कुछ करता नहीं है, परिणाम शून्य है। हमें इसे समझने के लिए विचारों की शुद्धि करनी चाहिए। अनजाने में हुई गलती का प्रायश्चित हो सकता है लेकिन जानबूझकर की गई गलती का प्रायश्चित नहीं हो सकता। महावीर स्वामी ने कहा कि व्यक्ति का आधार भाव-विचार से ही बनेगा।
वातावरण के अनुसार बदलते है भाव
हमारे वातावरण के आधार पर ही हमारे भाव शुद्ध या अशुद्ध होते है। जब हम मंदिर में, प्रवचन में जाते है तो हमारे भाव शुद्ध होते है। जब बाजार जाते है तो भाव बदल जाते है अशुद्ध हो जाते हैं। मतलब यह कि जैसा वातावरण होगा वैसे भाव आएंगे, जैसा विचार होगा, वैसा आचार होगा। विचारों पर अंकुश लगाना जरूरी है। क्योंकि व्यक्ति कल्पना के विचार में अपने वर्तमान को भूल जाता है।
कल्पना के कारण हाव-भाव, विचार बदल जाते है। ऐसे में हम जो प्राप्त करते है वह शुद्ध है या नहीं, यह विचार भी नहीं करते। पैसे कैसे भी आने चाहिए, न्याय से अन्याय से। कुछ क्षणों, महीनों, सालों के लिए आनंदित होते है। हम हम भूल जाते है कि अंतत: परिणाम कष्टप्रद ही होगा। मुश्किल में व्यक्ति की मदद करना चाहिए, उसकी ओ्र हाथ बढ़ाना चाहिए न कि उसकी तकलीफ बढ़ाना चाहिए।
नीलवर्णा जैन श्वेताबर मूर्तिपूजक ट्रस्ट अध्यक्ष विजय मेहता एवं सचिव संजय लुनिया ने जानकारी देते हुए बताया कि खरतरगच्छ गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभ सूरीश्वरजी के सान्निध्य में उनके शिष्य पूज्य मुनिराज श्री मनीषप्रभ सागरजी म.सा. आदिठाणा व मुक्तिप्रभ सागरजी प्रतिदिन सुबह 9.15 से 10.15 तक अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा करेंगे। वहीं कंचनबाग उपाश्रय में हो रहे इस चातुर्मासिक प्रवचन में सैकड़ों श्वेतांबर जैन समाज के बंधु बड़ी संख्या में शामिल होकर प्रवचनों का लाभ भी ले रहे हैं। सोमवार को हुई धर्मसभा में मुख्य रूप से राजेश सुराणा, हिम्मत भाई गांधी, संपतलाल खजांची, नवीन जैन, निर्मला व्होरा सहित सैकड़ों की संख्या में श्रावक-श्राविकाएं मौजूद थे।