टीबी के साथ छाती के कैंसर की जाँच भी जरुरी

थोरेसिक वैस्कुलर सर्जन्स ऑफ़ इंडिया की 16वीं वार्षिक सभा में एक्सपर्ट्स ने दी जानकारी
इंदौर. लम्बे समय तक खांसी चलने पर सभी का सबसे पहले ध्यान टीबी पर जाता है जबकि छाती के कैंसर और टीबी के लक्षण बिलकुल एक जैसे होते हैं इसलिए जरुरी है कि जब खांसी तीन हफ्ते से ज्यादा चले तो टीबी के साथ ही छाती के कैंसर की जाँच भी कराए.
होटल मेरियट में हुई थोरेसिक वैस्कुलर सर्जन्स ऑफ़ इंडिया की 16 वीं वार्षिक सभा में यह बात दिल्ली के मेदांता हॉस्पिटल से आए संस्था के नेशनल प्रेसिडेंट डॉ एसके जैन ने कही. उन्होंने कहा कि इस तरह की कॉन्फ्रेंस के जरिए हम डॉक्टर्स और सर्जन्स में जागरूकता फैलाना चाहते हैं. लोग 6-6 महीने तक टीबी का इलाज कराते रहते हैं और इस दौरान उनका कसर फाइनल स्टेज तक पहुंच जाता है.
अभी हम सिर्फ 3 से 5त्न मरीजों में ही कैंसर सर्जरी कर रहे हैं, यदि इस बारे में थोड़ी-सी जागरूकता आ जाए तो यह आकंड़ा 70 से 80 फीसदी मरीजों तक जा सकता है. जिंदगियां बचाने के लिए जागरूकता लाना बेहद जरुरी है. कॉन्फ्रेंस में 10 एक्सपर्ट्स ने अपने अनुभव देश भर से आए 200 से अधिक डेलीगेट्स से साझा किए.

देश में थोरेसिक सर्जन्स की बेहद कमी

डॉ जैन ने बताया कि देश में थोरेसिक सर्जन्स की बेहद कमी है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली जैसे महानगर में सिर्फ चार थोरेसिक सर्जन्स ही है. पहले सीटीवीएस कोर्स करके सर्जन्स तैयार किए जाते थे, उनमे से 99 प्रतिशत कार्डिएक सर्जरी की ओर चले जाते हैं. कार्डिएक सर्जरी में मरीज की जिंदगी और मौत का फैसला तुरंत हो जाता है जबकि थोरेसिक सर्जरी के पहले मरीज लम्बे समय तक तकलीफ पहले ही झेल चूका होता है इसलिए इसमें एक्सपर्ट सर्जन होना बहुत जरुरी है, जो मरीज की लम्बे समय से चली आ रही तकलीफ को दूर कर पाए.

वेरिकोज वेन्स भी है घातक

सेक्रेटरी डॉ अमिताभ गोयल ने बताया कि लम्बे समय तक खड़े रहकर काम करने वाले लोगों के पैरों की नसों में खून जमने लगता है, इस समस्या को वेरिकोज वेन्स कहते हैं. लोग सोचते हैं कि यह बीमारी सिर्फ पैरों तक सीमित होती है जबकि ऐसा नहीं है खून के यह थक्के मरीज के फेफड़ों में भी जम सकते हैं, जिसे हटाने के लिए वेस्कुलर सर्जरी ही सबसे सही निदान है.ऑर्गनाइसिंग चेयरमैन डॉ दिलीप आचार्य ने पुरानी तकनीक के अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि बहुत सारे ऐसे केसेस होते थे, जिनमें कॉम्प्लीकेशन्स बहुत ज्यादा होते थे। जैसे छाती की सर्जरी में कई बार मरीज को पस पड़ जाता था, जिसे निकालने के लिए उसके पूरी तरह पकने के बाद हाथ से छाती की एक लेयर निकालनी पड़ती थी. यह प्रक्रिया बेहद जटिल होती थी, मुझे अच्छी तरह याद है इसे करने के बाद कई दिनों तक मेरी अंगुलिया दर्द करती थी पर अब यह काम मशीनों के जरिए बड़ी आसानी से हो जाता है।

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