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एंडोस्कोपी ने कम किया इलाज का खर्च: डॉ. रेड्डी
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इंडियन सोसायटी ऑफ गैस्ट्रोइंटेरोलॉजी की वार्षिक सभा का समापन
इंदौर. इंडियन सोसायटी ऑफ गैस्ट्रोइंटेरोलॉजी, एमपी सीजी चैप्टर द्वारा आयोजित दो दिवसीय वार्षिक सभा के दूसरे और अंतिम दिन एंडोस्कोपी से सम्बंधित नई तकनीकों, मोटापा तथा अन्य बीमारियों में एंडोस्कोपी का आसान प्रयोग तथा कम खर्चे और कम तकलीफ के बारे में बात की गई.
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पद्मभूषण डॉ. नागेश्वर रेड्डी ने इस अवसर पर एंडोस्कोपिक मैनेजमेंट ऑफ़ ओबेसिटी: पास्ट, प्रेजेंट एन्ड फ्यूचर विषय पर व्याख्यान दिया. उन्होंने एंडोस्कोपी के बढते उपयोग का कारण बताया कि नई तकनीक ने अब इलाज के बोझ को बहुत कम कर दिया है. अब सामान्य बीमारियों की जांच से लेकर ट्यूमर तक के इलाज के लिये एंडोस्कोपी पर निर्भर किया जा सकता है.
मोटापे के लिए की जाने वाली एंडोस्कोपिक प्रक्रिया बहुत सहज हो गई है और इसके सक्सेस रेट भी पहले से कहीं ज्यादा हो गए हैं. इससे पेट पर कोई निशान भी नहीं छूटता, काम से कम समय के लिये अस्पताल में रहना होता है, सस्ता होता है और भारत मे भी अब यह आसानी से उपलब्ध है. डाइबिटीज के मरीजों में भी एंडोस्कोपी के जरिये अब ज्यादा प्रभावी इलाज संभव है. हमारे यहां एक आम समस्या हायपर एसिडिटी की है और इसके इलाज में एंडोस्कोपी की मदद से बहुत अच्छे रिजल्ट मिल पा रहे हैं। एक समस्या यह भी है कि लोग एसिडिटी के लिए बिना सोचे ओवर द काउंटर दवाएं लेते हैं जिनसे लिवर और किडनी दोनों पर बुरा असर पड़ता है और कैंसर जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं। इसलिए लंबे समय तक इन दवाओं को लेने से बचें।
पहले से बेहतर हुई तकनीक
मुम्बई से आये एक्सपर्ट डॉ. विनय धीर ने ईयूएस तकनीक यानी एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड से होने वाले फायदों की बात की. उन्होंने बताया कि पिछले 30 सालों से एंडोस्कोपी के क्षेत्र में अद्भुत और सफल प्रयोग हुए हैं और यह तकनीक बहुत बेहतर हो गई है। अब हमारे पास पहले से पतले स्कोप हैं जिनका प्रयोग कर हम सटीक जांचें और इलाज कर सकते हैं। एनेस्थेसिया पहले से कहीं अधिक प्रभावी हुआ है। आज से 25-30 साल पहले जिन स्थितियों के लिए मरीज को सीधे सर्जरी के लिए भेज दिया जाता था अब एंडोस्कोपी के जरिये उन स्थितियों में भी हम जांच करके बीमारी का पता लगा सकता है। फिर इलाज शुरू कर सकते हैं। पेट की गठान के मामले में भी एंडोस्कोपी बहुत फायदेमंद सिद्ध हुई है। इससे बायोप्सी भी आसान हुई है। पेशेंट अगर खाना नही खा पा रहा है तो 15मिनिट में स्टेंट डालकर उसे खाना दिया जा सकता है। इस प्रक्रिया में कॉम्प्लिकेशन कम होते हैं, डायग्नोसिस अच्छा होता है, खर्च कम आता है और साइड इफेक्ट्स भी कम होते हैं। इलाज पहले से काफी बेहतर हुए हैं जरूरत अब लोगों को अपना ध्यान रखने की है। हम भरतीयों की समस्या भोजन से कहीं अधिक लाइफस्टाइल से सम्बंधित है, जिसे सुधारना जरूरी है। सामान्य और पौष्टिक खाना, नियमित एक्सरसाइज और मेडिटेशन जैसी चीजें अपनाएं इससे पेट भी खुश रहेगा और आप भी।
बच्चे को जबरदस्ती खाना न खिलाएं
दिल्ली से आईं पीडियाट्रिक गैस्ट्रोइंटेरेलोजिस्ट डॉ. सुफला सक्सेना ने बच्चों में नॉन ऐल्कॉहॉलिक फैटी लिवर डिसीज के बारे में प्रेजेंटेशन दी। उन्होंने बताया कि आजकल सेडेंटरी लाइफस्टाइल और खान-पान में बदलाव के चलते बच्चों में भी मोटापा बड़े पैमाने पर बढ़ा है। इसके लिए शुरू से ही बच्चों में सामान्य और ताजा भोजन, रेग्युलर फिजिकल एक्टिविटीज और प्रॉपर लिक्विड इंटेक को लेकर सतर्कता रखनी जरूरी है। बच्चे को जबरदस्ती खाना न खिलाएं। उसके खाने में चीज़, पनीर, फल और मांसाहार के रूप में अंडे,फिश या मीट शामिल करें। जंक फूड कम से कम दें और उसे खूब दौड़ने भागने दें। बच्चों में कब्ज भी आजकल एक बड़ी समस्या है जो कई बार अनुवांशिक भी हो सकती है। ऐसे में अगर बच्चे को पेट दर्द, गैस बनने या अन्य समस्या की शिकायत बनी रहती है तो डॉक्टर से सलाह जरूर लें अपने मन से इलाज करने की बजाय।
सरल और सस्ता बनाया
ऑर्गेनाइज़िंग चेयरपर्सन डॉ. सुनील जैन के अनुसार, एंडोस्कोपी के क्षेत्र में आई क्रांति ने आज न केवल डॉक्टरों के लिए बल्कि मरीजों के लिए भी इलाज को सरल और सस्ता बनाया है। अब पेट के रोगों का इलाज पहले से कहीं ज्यादा सुलभ है। इस कॉन्फ्रेंस के जरिये हमने एंडोस्कोपी और अन्य तकनीकों के बारे में विशेषतौर पर चर्चा की जिसका फायदा युवा डॉक्टर्स को मिलेगा और वे अपने मरीजों को और बेहतर सुविधाएं तथा इलाज दे पाएंगे।
डॉ. हरिप्रसाद यादव, ऑर्गेनाइज़िंग सेक्रेटरी, आईएसजी, एमपीसीजी चैप्टर, ने जानकारी दी कि आयोजन के अंतर्गत देश के 250 से अधिक विशेषज्ञों ने उपस्थिति दर्शाई। इस अवसर पर युवा डॉक्टरों ने अपने प्रेजेंटेशन और पोस्टर्स के जरिये विभिन्न विषयों से जुड़ी जानकारी भी प्रदर्शित की।