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ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ रही है अस्थमा के मरीजो की संख्या
बच्चों में अस्थमा के मामलो में आश्चर्यजनक बढोतरी, इंदौर में हर 15 वां व्यक्ति अस्थमा का मरीज
इन्दौर। एक अनुमान के मुताबिक स्थानीय डॉक्टर्स रोजाना औसतन करीब 40 मरीजों को अस्थमा की बीमारी से पीड़ित पाते हैं। इसमें से करीब 60 फीसदी से ज्यादा पुरुष होते हैं। हर साल बच्चों में अस्थमा (पीडिएट्रिक अस्थमा) के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है।
डॉक्टर्स का मानना है कि वे बच्चों में अस्थमा के 25-30 नए मामले हर महीने देखते हैं। पिछले एक साल में अस्थमा के पीड़ित मरीजों की संख्या में औसतन 5 फीसदी बढ़ोतरी देखी गई है। इन्दौर शहर में ही अस्थमा के मरीजो की संख्या 2 के करीब पंहुच चुकी है।
वर्ल्ड अस्थमा वीक ( 1 मई से 7 मई ) के मौके पर ‘‘बे रोक जिंदगी ’’ स्लोगन के साथ आयोजित प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए छाती रोग विशेषज्ञ डॉ.प्रमोद झंवर , पीडियाट्रिशियन डॉ. राजीव संघवी, व एमडी पल्मोनरी डॉ मिलिंद बाल्दी ने बताया कि अस्थमा बीमारी के बढने की सबसे बडी वजह वाहनो की संख्या में इजाफा और विकास के नाम पर पेडों की अंधाधुंघ कटाई है। धुल, सर्दी जुकाम , पराग कण , पालतु जानवरो बाल एंव वायु प्रदुषक को अस्थमा का सबसे बडा कारण माना जाता है।
पिछले कुछ सालो में भावनात्मक आवेश भी अस्थमा अटैक का सबसे बडा कारण बनकर सामने आया है। ज्यादा खुशी और ज्यादा गम जैसे भावनात्मक क्षणों के पीछे का तनाव अस्थमा रोगी की बीमारी को बढा देता है। शहर में वाहनों की संख्या का लगातार बढना अस्थमा के पेशेंट बढ़ने का सबसे बडा कारण है। लाखों गाडियों से निकलने वाला धुंआ दमा का सबसे बडा कारण है।
उन्होंने बताया कि कुल वयस्क आबादी का 10 से 15 प्रतिशत तथा बच्चो की आबादी का 5 से 10 प्रतिशत अस्थमा से पीडित है। सबसे बडी बात ये है के मरीजों को कई बार पता भी नही होता की वो इस गंभीर बिमारी की चपेट में आ चुके है। इन्दौर में अस्थमा के मरीजो की संख्या दो लाख के करीब है। अस्थमा की बीमारी का बढ़ने का सबसे प्रमुख कारण ग्लोबल वार्मिंग है।
60 साल हो गए इन्हेलर थेरेपी को
चिकित्सकों ने बताया कि अस्थमा पर पूर्ण नियंत्रण संभव है इसका मरीज एक सामान्य जीवन जी सकता है। अस्थमा के लिए इनहेलर थेंरेपी ही बेस्ट है । यह सीधे रोगी के फेफडो मे पंहुचकर अपना प्रभाव तुरंत दिखाना शुरू कर देती हैं । बीसवीं सदी के पहले 50 सालों में अस्थमा के इलाज के लिए गोलियां, सिरप और इंजेक्शन के रूप में दवाएं इस्तेमाल की जाती थीं। हालांकि उनसे मरीजों की जीवन प्रत्याशा बढ़ाने में बहुत कम मदद मिलती थी। बहुत से मरीज उचित इलाज न मिलने के कारण दम तोड़ देते थे।
1950 के दशक में कॉर्टिसन नाम के नेचुरल स्टेरॉयड का प्रयोग अस्थमा के इलाज के लिए किया जाने लगा। 1956 में एमडीआई (मीटर्ड डोज इनहेलर) का प्रयोग शुरू किया गया। इससे अस्थमा के इलाज में एक मेडिकल क्रांति आई। इस डिवाइस से दवा सीधे फेफड़ों में पहुंचाई जाती थी और मरीजों को तुरंत आराम मिलता है और वह सुरक्षित रहते हैं। अस्थमा और इनहेलेशन थेरेपी के प्रति लोगों का नजरिया बदलने में 6 दशकों का समय लगा। जीवन की गुणवत्ता पर अस्थमा का प्रभाव उससे कहीं ज्यादा है, जितना कि मरीज सोचते हैं। इस बीमारी के इलाज की अवधारणा रोगियों के दिमाग में ज्यादा नियंत्रित है।
वीक के मौके पर् निःशुल्क स्क्रिनिंग केंप का आयोजन
वीक के मौके पर 5 मई को सुबह 7 बजे से बैंकुठधाम गार्डन व 9 मई को दोपहर 5 बजे से 5 बजे तक गीता भवन अस्पताल में अस्थमा के मरीजो की निःशुल्क जांच की जाएगी जिसमें चिकित्सक लंग फंक्षन टेस्ट , स्क्रीनिंग आदि करेंगे । इस दौरान मरीजों को इस बीमारी से बचने की जानकारी देने वाले पर्चे भी वितरित किये जाएंगे।