- उर्वशी रौतेला 12.25 करोड़ रुपये में रोल्स-रॉयस कलिनन ब्लैक बैज खरीदने वाली पहली आउटसाइडर इंडियन एक्ट्रेस बन गई हैं।
- Urvashi Rautela becomes the first-ever outsider Indian actress to buy Rolls-Royce Cullinan Black Badge worth 12.25 crores!
- 'मेरे हसबैंड की बीवी' सिनेमाघरों में आ चुकी है, लोगों को पसंद आ रहा है ये लव सर्कल
- Mere Husband Ki Biwi Opens Up To Great Word Of Mouth Upon Release, Receives Rave Reviews From Audiences and Critics
- Jannat Zubair to Kriti Sanon: Actresses who are also entrepreneurs
“ममता बनी आजीवन का बोझ”

कच्ची उम्र में शादी के चलते कल्याणी गर्भधारण, गर्भावस्था के समय के देखरेख और पोषण, इन सभी महत्वपूर्ण बातों से अंजान थी। परिवार का मूल मंत्र था की लड़कियों का ब्याह जल्दी कर देना चाहिए। इसी के चलते कल्याणी का विवाह शंभू के साथ हो गया। कल्याणी तो अभी परिणय बंधन की जिम्मेदारियों को समझने में सक्षम भी नहीं थी पर वह पारिवारिक दबाव के कारण मातृत्व की सीढ़ी चढ़ने को अग्रसर हो गई थी।
परिवार में काफी खुशी का माहौल था, पर शायद किसी का भी कल्याणी की स्वास्थ्य संबन्धित स्थितियों पर ध्यान नहीं था। गर्भधारण के पूर्व ही शरीर को विभिन्न स्थितियों के लिए तैयार करना होता है। सासु माँ की अभिलाषा शीघ्र अतिशीघ्र दादी बनने की थी, पर वह बहू के रूप में आई बेटी की शारीरिक और मानसिक मनोदशा को भूल गई। विवाह के पश्चात हमेशा लड़की थोड़ी सकुचाई रहती है। खुलकर बोलने पर मायके की इज्जत का जनाजा निकल जाता है। इसलिए वह भी मन की अस्वीकारिता होते हुए भी सब कुछ स्वीकार करने के लिए बाध्य थी।
कल्याणी की सास ने बेटे को अपनी आज्ञा में रहना तो सिखाया था पर पत्नी के प्रति प्रेमपूर्वक, समर्पण और समझ वाला व्यवहार सिखाना भूल गई। वर्तमान समय में टेक्नालजी बहुत विकसित है, पर कल्याणी की सास तो अल्ट्रासाउंड को फालतू ढकोसला मानती है। इसी संकीर्ण सोच के चलते कल्याणी का समय-समय पर चिकित्सकीय परीक्षण भी नहीं हो सका। वह तो अपने बच्चे की धड़कन को महसूस करना चाहती थी। शंभू भी हृदय से इस पल को जीना चाहता था, पर शंभू की खासियत तो श्रवण कुमार के अवतार की थी। सातवे महीने बाद नदी-नाले नहीं लांघे जाते इसलिए कई बार घर के दरवाजे से गिरने पर भी उसे अस्पताल नहीं ले जाया गया।
गर्भावस्था के दौरान सभी जरूरी पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है जिसकी रिक्तता जच्चा-बच्चा के लिए हानिकारक होती है, पर सास का अंधविश्वासी स्वभाव और पर्याप्त जानकारी का अभाव अंदर पल रहा नन्हें शिशु और कल्याणी भुगत रही थी। इन सभी परिस्थितियों के चलते समय पूर्व ही बच्चे का जन्म दाई माँ के मार्गदर्शन में आठवें महीने में हुआ। पर यह क्या था नन्हें फरिश्ते के आने की खुशी तो जीवन भर के सदमे का रूप धारण कर चुकी थी। कल्याणी का बेटा कान्हा जन्मजात बीमारियों और दिव्याङ्ग्ता की कैद में था। कल्याणी शंभू को देखते हुए सिसक-सिसक कर रो रही थी कि मैंने तो गृहस्थी को लेकर सुंदर-सुंदर सपने बुने थे। सास के अनुचित निर्णय ने उसकी ममता को आजीवन बोझ का रूप दे दिया।
इस लघु कथा से यह शिक्षा मिलती है कि न तो किसी के लिए अनुचित निर्णय ले और न ही किसी को अनुचित निर्णय मानने के लिए बाध्य करें। कुछ परिवर्तन समय के अनुसार हितकर होते है, उन्हें अपनाने का प्रयास करें। मातृत्व एक अद्वितीय और सुखद अनुभूति है। उसे किसी के लिए भी आजीवन बोझ का रूप न बनने दे।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)