- अभिनेत्री ज्योति सक्सेना ने अपने जन्मदिन के प्लान्स किये साझा: प्यार और लोगो को खुश करें का जश्न
- Actress Jyoti Saxena Shares Her Birthday Plans: A Celebration of Love and Giving Back
- Actress Jyoti Saxena Shares Her Bollywood Bucket List: Dream Roles And Working With Some Underrated Actors
- अभिनेत्री ज्योति सक्सेना ने अपनी बॉलीवुड बकेट लिस्ट साझा की: ड्रीम भूमिकाएं और कुछ अंडररेटेड अभिनेताओं के साथ काम करने की इच्छा व्यक्त करती है।
- Vaarun Bhagat Slayed With His Charismatic Look At The Premiere Night At The Undekhi 3 Special Screening
भारत में मिर्गी का बोझ
मिर्गी एक दिमागी बीमारी है, जिसकी पहचान मरीज को बार-बार दौरे प़ड़ने से होती है। इसमें थोड़े समय के लिए मरीज का अपने शरीर पर कोई नियंत्रण नहीं रहता। इसमें आंशिक रूप से शरीर का कोई भाग या सामान्य रूप से पूरा शरीर शामिल हो सकता है। मिर्गी के दौरों में कई बार मरीज बेहोश हो जाता है और कभी-कभी आंतों या मूत्राशय की कार्यप्रणाली पर उसका कोई नियंत्रण नहीं रहता।
मिर्गी के दौरे दिमाग में अधिक मात्रा में विद्युतीय तरंगों के प्रवाह का नतीजा है। इससे थोड़ी देर तक मरीज की चेतना लुप्त हो सकती है या मांसपेशियों में ऐंठन महसूस हो सकती है। मिर्गी के दौरों के गंभीर प्रभाव में मरीज लंबे समय तक बेहोश रह सकता है और उसकी मांसपेशियों में लंबे समय तक ऐंठन हो सकती है। मिर्गी के दौरे विभिन्न हालात में अलग-अलग हो सकते हैं। इसमें से कुछ मरीजों को साल में एक बार और कुछ मरीजों को एक ही दिन में बार-बार दौरे पड़ते हैं।
मिर्गी के दौरों की विशेषताएं अलग-अलग होती है। यह इस बात पर निर्भर करती है कि दिमाग में गड़बड़ी सबसे पहले कहां शुरू हुई और कहां तक यह फैली है। इसके स्थायी लक्षण दिखाई पड़ सकते हैं जैसे चेतना या एकाग्रता मे कमी और संवेदनाओं का लुप्त होना (जिसमें देखना, सुनना और स्वाद लेना शामिल है) विभिन्न शारीरिक अंगों में समन्वय या दूसरी संज्ञानात्मक कार्यप्रणाली की कमी। मिर्गी के दौरों के मरीजों को काफी शारीरिक समस्याएं भी होती है, जिसमें फ्रैक्चर या मिर्गी के दौरों के दौरान लगने वाली चोट शामिल है। इसके अलावा मरीजों में बेचैनी और डिप्रेशन के भी लक्षण दिखाई देते हैं। इसी तरह सामान्य लोगों[1] की तुलना में मिर्गी के रोग से प्रभावित मरीजों की समय से पहले मौत होने का खतरा 3 गुना ज्यादा रहता है।
पूरी दुनिया में 50 मिलियन लोग मिर्गी से पीड़ित है। यब विश्व में मौजूद सबसे सामान्य न्यूरोलॉजिकल समस्याओं में से एक है। विश्व में मिर्गी के मरीजों की संख्या का छठा हिस्सा भारत में रहता है। भारत में 12 मिलियन लोग मिर्गी से जूझ रहे हैं। दिमाग की गड़बड़ी की यह पुरानी गैर संक्रामक बीमारी सभी उम्र के मरीजों को प्रभावित करती है। यह बीमारी शहरी आबादी (0.6 फीसदी) की अपेक्षा गांवों (1.9 फीसदी) में ज्यादा फैली है। कम और मध्यम आय वर्ग वाले देशों[2] में करीब 80 प्रतिशत मरीज मिर्गी की बीमारी से ग्रस्त हैं।
बीमारी को बेहतर ढंग से कैसे करें मैनेज
एबॅट के एसोसिएट मेडिकल डायरेक्टर डॉ. जे. करणकुमार ने कहा, “मिर्गी के दौरे के प्रकार या उससे जुड़ी स्थितियों की जल्दी और उचित पहचान मरीज को बेहतर इलाज मुहैया कराने में मदद कर सकती है।”
उन्होंने यह भी कहा कि “समाज के विभिन्न वर्गों में मिर्गी के रोग के बारे में फैली गलत धारणाओं और भ्रांतियों को दूर करने के लिए मिर्गी के बारे में जानना बहुत जरूरी है। इसी के साथ मरीजों की बीमारी की प्रकृति, उनके परिवार, उनकी विशेषताएं, कारण और निदान के बारे में जानना बहुत जरूरी है।”
लिंग आधारित तुलना और महिलाओं में मिर्गी का रोग (डब्ल्यूडब्ल्यूई)
शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में आमतौर पर यह सहमति देखने को मिली कि महिलाओं में मिर्गी का रोग मामूली रूप से कम पाया जाता है। महिलाओं को पुरुषों[3] की तुलना में मिर्गी के दौरे भी कम देखने को मिलते हैं।
हालांकि मिर्गी से प्रभावित महिलाओं की हालत पुरुषों जैसी नहीं होती। मिर्गी महिलाओं में सेक्स लाइफ, मासिक धर्म, गर्भधारण, प्रजनन की क्रिया को प्रभावित करने के साथ बांझपन की समस्या को भी जन्म दे सकती है। ओस्ट्रोजन जहां मिर्गी के दौरों के खतरे को बढ़ाता है, वहीं प्रोजेस्टोरोन इसे रोकता है।
यह अनुमान लगाया जाता है कि भारत में 2.73 मिलियन महिलाएं मिर्गी से पीड़ित है। इनमें से 52 प्रतिशत महिलाएं प्रजनन के आयुवर्ग[4] (15 से 49 वर्ष) में हैं। भारत में किए गए अध्ययन से पता चला कि भारत में 60 प्रतिशत से ज्यादा महिलाओं ने शादी से पहले अपनी बीमारी छिपाई थी क्योंकि इससे उन्हें सामाजिक कलंक लगने और शादी की बातचीत टूटने का डर था। अध्ययन से यह भी पता चला कि 52 प्रतिशत लोग मिर्गी की बीमारी को वंशानुगत गड़बड़ी मानते हैं, जबकि 49 प्रतिशत लोगों का यह मानना है कि मिर्गी के मरीजों को कभी शादी नहीं करनी चाहिए। इसके अलावा 60 प्रतिशत लोग यह मानते है कि मिर्गी से प्रभावित लोगों की सेक्स लाइफ नॉर्मल नहीं होती।
महिलाओं में मिर्गी की बीमारी के प्रबंधन के लिए न केवल मिर्गी के रोग के संबंध में जानकारी होनी चाहिए, बल्कि उन विभिन्न भूमिकाओं की पहचान होनी चाहिए, जिन्हें महिलाएं निभाती है। महिलाओं की प्राथमिकताओं में शिक्षा ग्रहण करना, कॅयिर बनाना, बच्चे को जन्म देना और उसका पालन पोषण करना और बड़े परिवार में सभी सदस्यों की देखभाल करना शामिल है।
सामाजिक प्रभाव : कलंक, मिथक और वर्जित धारणाएं
मिर्गी के दौरे के कई आर्थिक प्रभाव भी पड़ते हैं। स्वास्थ्य रक्षा की जरूरतों पर ज्यादा ध्यान देना होता है। समय से पहले मौत हो सकती है और काम करने की क्षमता में आ सकती है। मिर्गी से जूझ रहे लोग भेदभाव का शिकार बन सकते हैं। इससे अपने लक्षणों को देखकर इलाज कराने की सोच रहे मरीज हतोत्साहित हो सकते हैं, जिससे कोई यह न जान सके कि उन्हें मिर्गी की बीमारी है। हालांकि मिर्गी के मरीजों पर पड़ने वाले सामाजिक प्रभाव अलग-अलग देशों में अलग-अलग हो सकते है, लेकिन इन मरीजों के प्रति भेदभाव और सामाजिक कलंक को दूर करना मिर्गी के मरीजों के दौरों पर लगाम लगाने से कहीं ज्यादा मुश्किल है।
इंदौर में संचालित और ग्लोबल जर्नल फॉर रिसर्च एनालिसस में प्रकाशित केएपी स्टडी के अनुसार 75 प्रतिशत लोगों का यह मानना है कि मिर्गी का रोग मरीजों के सामान्य जिंदगी जीने में रुकावट डालता है।
मिर्गी के बारे में भारत में कई समुदायों ने कई गलत धारणाओं को कायम रखा हुआ है। 15 प्रतिशत लोग मिर्गी को एक संक्रामक रोग मानते हैं, जबकि 64 प्रतिशत लोगों का विश्वास है कि मिर्गी एक मानसिक बीमारी है।[5] मिर्गी को कभी-कभी गलत कर्मों और वर्जित धारणाओं को तोड़ने की सजा भी कहा जा सकता है। मिर्गी के कुछ रूपों में मरीजों के ऊंटपटांग व्यवहार को देखकर लोग यह भी मानते हैं कि मरीज पर किसी आत्मा का साया है। 20 प्रतिशत लोग यह मानते हैं कि तांत्रिक से इलाज कराना मिर्गी के लिए अच्छा होता है। वहीं समान अनुपात में लोगों का यह भी मानना है कि पुजारी मिर्गी का इलाज बेहतर ढंग से कर सकते हैं। इन सभी बयानों को 20 प्रतिशत लोगों के इस विश्वास से बल मिलता है कि मिर्गी का रोग मरीज के पूर्व जन्म के पापों का फल है।[6]
शहरी क्षेत्रों में भी मिर्गी के संबंध में बहुत सारी गलत धारणाएं फैली हुई हैं, जो इन मरीजों को मिर्गी का प्रभावी ढंग से इलाज कराने और अपने परिवारों से उचित समर्थन प्राप्त करने से रोकती है। मिर्गी रोग से जुड़ा कलंक न केलल बीमारी के इलाज, बल्कि मरीजों की शिक्षा, रोजगार, शादी, बच्चों के जन्म, स्कूल, नौकरी और परिवार में भेदभाव के माध्यम से भी मरीजों पर प्रभाव डालता है। 60 प्रतिशत से अधिक लोगों का मानना है कि मिर्गी के मरीजों को नौकरी नहीं करनी चाहिए। 32 प्रतिशत लोगों का मानना है कि मिर्गी के रोगियों को पढ़ाई भी नहीं करनी चाहिए। 25 प्रतिशत लोगों का कहना है कि अगर उनके बच्चे मिर्गी से पीड़ित बच्चों के साथ पढ़ेंगे या खेलेंगे तो वह उन्हें ऐसा करने से रोकेंगे।[7]
इस तरह की भ्रामक धारणाएं मिर्गी के मरीजों के इलाज के लिए फर्स्ट ऐड के रूप में अपनाए गए तरीकों पर भी प्रभाव डालती है। 50 प्रतिशत लोगों का मानना है कि मिर्गी के दौरे आने की स्थिति में वह मरीज के चेहरे पर पानी के छींटें डालकर उसकी मदद करेंगे, बल्कि 20 प्रतिशत लोगों का कहना है कि वह सबसे पहले मिर्गी के मरीज को जूता, चप्पल या प्याज सुंघाएंगे।
जांच या इलाज
किसी व्यक्ति को मिर्गी के दौरे पड़ने और उसके प्रकार के बारे में जानना बहुत ही मुश्किल है। मिर्गी के अलावा भी कई तरह की गड़बड़ियों से बर्ताव में बदलाव आ सकता है। इस तरह के मरीजों को देखकर यह भ्रम पैदा हो सकता है कि मरीज मिर्गी से ग्रस्त है। हालांकि मिर्गी के दौरों का इलाज सही निदान पर निर्भर करता है, जांच से ही यह सुनिश्चित होता है कि मरीजों को मिर्गी का ही रोग है। यह जानना बहुत जरूरी है कि यह इस रोग का कौन सा प्रकार है। मिर्गी के दौरों में मरीज को क्या होता है, यह जानना बहुत जरूरी है। मिर्गी के दौरे डॉक्टरों के पास मरीजों को कम ही पड़ते हैं। इससे किसी मरीज के मिर्गी के दौरों के संबंध में डॉक्टरों को मरीज की ओर से या उसके सहायक की ओर से दी गई जानकारी महत्वपूर्ण हो जाती है।
किसी मरीज की मिर्गी की स्थिति की जांच करने के लिए डॉक्टरों को मरीज के लक्षणों की समीक्षा करनी चाहिए और उसकी मेडिकल हिस्ट्री की जानकारी होनी चाहिए। मरीजों को जांच के लिए कहने से पहले डॉक्टरों के पास ऐसी जानकारी होना बहुत जरूरी है। इसमें कराए जाने वाले कुछ टेस्ट में निम्नलिखित जांच शामिल है
- मरीज के व्य़वहार, शारीरिक अंगों की स्थिति, उसके दिमाग की कार्यप्रणाली और अन्य क्षेत्रों के बारे में जानने के लिए न्यूरोलॉजिकल टेस्ट कराने चाहिए।
- संक्रमण, जेनेटिक स्थितियों और मिर्गी से संबंधित अन्य हालात को जानने के लिए ब्लड टेस्ट कराया जाता है।
- इलेक्ट्रोइनसेफैलोग्राम (ईईजी) मिर्गी के रोग का पता लगाने के लिए एक सामान्य टेस्ट है। इस टेस्ट में डॉक्टर मरीज की खोपड़ी में इलेक्ट्रोड्स जोड़ते हैं, जिससे दिमाग की इलेक्ट्रिकल गतिविधि का पता चलता है। अगर किसी मरीज को मिर्गी रोग है तो उसके दिमाग की तरंगों की सामान्य कार्यप्रणाली में दौरों के बिना भी कुछ गड़बड़ी दिखाई पड़ती है। डॉक्टर ईईजी करते समय किसी समय के दौरे का रेकॉर्ड रखने के लिए मरीज का वीडियो देख सकते हैं। मरीज को आने वाले दौरों की रेकॉर्डिंग करना डॉक्टरों को मरीजों का उचित इलाज करने में मदद करता है।
मरीज को पड़ने वाले मिर्गी के दौरों के प्रकार के बारे
में पता लगाकर या यह जानकर कि मरीजों को दौरे आना कब शुरू हुए, डॉक्टर मरीजों का
प्रभावी इलाज कर सकते हैं। समय से मरीजों के लक्षणों से रोग की पहचान और उचित इलाज
मुहैया होने से 70 प्रतिशत से अधिक मरीजों को मिर्गी के दौरों से मुक्त सामान्य
जिंदगी जीने में मदद मिल सकती है।[8] हालांकि इस तरह के इलाज की पहुंच अभी अधिकांश
मरीजों तक नहीं है। मरीजों के इलाज में यह अंतर मेट्रो में 22 प्रतिशत और दूरजराज
के इलाकों में और ग्रामीण आबादी में 95 प्रतिशत के अनुपात में देखने को मिलता है।