क्यों नहीं करने चाहिए श्री गणेश की पीठ के दर्शन

डॉ श्रद्धा सोनी

ऋद्धि सिद्धि के दाता यानि गणेश जी का स्वरूप बेहद मनोहर एंव मंगलदायक है।

एकदंत और चतुर्बाहु गणपति अपने चारों हाथों में पाष, अंकुष, दंत और वरमुद्रा धारण करते हैं।
उनके ध्वज में मूषक का चिन्ह है।
उनके शरीर पर जीवन और ब्रहमांड से जुड़े अंग निवास करते हैं।
भगवान शिव एंव आदि शक्ति का रूप कहे जानी वाली माता पार्वती के पुत्र गणेश जी के लिए ऐसी मान्यता है कि इनकी पीठ के दर्शनों से घर में दरिद्रता का वास होता है।
इसलिए इनकी पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए।
अनजाने में पीठ के दर्शन हो जाएं तो मुख के दर्शन करने से ये दोष समाप्त हो जाता है।
गणेशजी के
कानों में वैदिक ज्ञान
सूंड में धर्म
दांए हाथ में वरदान
बांए हाथ में अन्न
पेट में सुख समृद्धि
नेत्रों में लक्ष्य
नाभि में ब्रहमांड
चरणों में सप्तलोक और मस्तक में ब्रहमलोक होता है।
जो जातक षुद्ध तन और मन से उनके इन अंगों के दर्शन करता है।
उनकी धन, संतान, विद्या और स्वास्थ्य से संबधित सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
इसके अलावा जीवन में आने वाले संकट से भी छुटकारा मिलता है।
विघ्नहर्ता गणेश जी
धार्मिक उददेश्य से ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक पद्धति मानी गई वास्तुशास्त्र विधा में भी गणेश जी का महत्व है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार
घर के सारे दोष महज़ गणेश जी की पूजा करने मात्र से ही खत्म हो जाते हैं।
सम्पूर्ण मनोकामनाएं पूर्ण करने वाले गणेश जी अपने भक्तों को कभी दुख नहीं देते हैं और सब पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं।
ताकि उनके भक्तों को हमेशा सुख की प्राप्ति हो और कोई भी समस्या उनको छू न पाए।
हिंदू शास्त्रों में
कई शुभ और अशुभ संकेतों का वर्णन किया गया है।
इन्हें मनुष्य को प्रतिदिन के निर्देंशों के रूप में लेना चाहिए।
श्री गणेश के अलावा भगवान विष्णु की पीठ के भी दर्शन नहीं करने चाहिए।
भगवान विष्णु की पीठ पर अधर्म का वास है।
जो व्यक्ति इनकी पीठ के दर्शन करता है उसके सभी पुण्य खत्म हो जाते हैं और अधर्म बढ़ता है एक बार सभी देवों में यह प्रश्न उठा कि पृथ्वी पर सर्वप्रथम किस देव की पूजा होनी चाहिए।
समस्या को सुलझाने के लिए एक प्रतियोगिता आयोजित की, जो अपने वाहन पर सवार हो पृथ्वी की परिक्रमा करके प्रथम लौटेंगे, वही पृथ्वी पर प्रथम पूजा के अधिकारी होंगे।
सभी देव अपने वाहनों पर सवार हो चल पड़े।
गणेश जी ने अपने पिता शिव और माता पार्वती की सात बार परिक्रमा की और शांत भाव से उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े रहे।
कार्तिकेय अपने मयूर वाहन पर आरूढ़ हो पृथ्वी का चक्कर लगाकर लौटे और गर्व से बोले, कि मैं इस स्पर्धा में विजयी हुआ, इसलिए पृथ्वी पर प्रथम पूजा पाने का अधिकारी मैं हूं।
तब भगवान शिव ने कहा
श्री गणेश अपने माता-पिता की परिक्रमा करके यह प्रमाणित कर चुके हैं कि माता-पिता से बढ़कर ब्रह्मांड में कुछ और नहीं है।
इसलिए अब से इस दुनिया में हर शुभ काम से पहले उन्हीं की पूजा होगी।

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