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भगवान कृपा की कोई सीमा नहीं: पं. शुकदेव
धर्मराज कालोनी में नानी बाई रो मायरो की कथा का शुभारंभ, किन्नरों ने किया व्यासपीठ पूजन
इंदौर. हम तो दो हाथों से लेने वाले हैं लेकिन भगवान के हजारों हाथ हैं और जब वे प्रसन्न होते हैं तो इतना देते हैं कि लेने वाले हाथ कम पड़ जाते हैं. भगवान जब भक्तों पर कृपा करते हैं तो उसकी कोई सीमा नहीं होती. नानी बाई के मायरे की कथा भक्त और भगवान, पिता और पुत्री तथा मायके और ससुराल के बीच रिश्तों को अलग-अलग स्वरूपों में व्यक्त करती है. भक्त के प्रति भगवान की करूणा, कृपा, स्नेह और सौजन्य की यह अनूठी कथा भारतीय संस्कृति का स्वर्णिम पृष्ठ है.
ये विचार हैं ललितपुर-झांसी के भागवताचार्य पं. शुकदेव महाराज के, जो उन्होंने आज एरोड्रम रोड, कालानी नगर के पास स्थित धर्मराज कालोनी में आयोजित छह दिवसीय शनि जयंती महोत्सव में आज से प्रारंभ तीन दिवसीय नानी बाई रो मायरो की कथा में उपस्थित भक्तों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए. प्रारंभ में गृह निर्माण मंडल के अध्यक्ष कृष्णमुरारी मोघे, पार्षद गोपाल मालू, दीपक जैन टीनू, भाजयुमो अध्यक्ष मनस्वी पाटीदार आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया. आयोजन समिति की ओर से धर्मेश यादव, मोनू यादव एवं गोपाल यादव ने भागवताचार्य की अगवानी की. आज भी किन्नरों ने भक्तों के बीच पहुंचकर भजनों पर नृत्य किया और मंच पर पहुंचकर भागवताचार्य से आशीर्वाद प्राप्त किए. धर्मराज कालोनी रहवासी संघ, हम्माल कालोनी युवा संगठन एवं नवग्रह शनिधाम की मेजबानी में आयोजित इस महोत्सव में मंगलवार 15 मई को दोपहर 2 से सांय 6 बजे तक मायरे की कथा में भगवान शंकर और भगवान कृष्ण की कृपा के बाद नरसी मेहता पर चढ़े भक्ति के रंग का जीवंत चित्रण होगा.
जिसका कोई नहीं उसके सांवरिया सेठ
मायरे की कथा में आचार्य शुकदेव ने बताया कि किस तरह नानीबाई के ससुरालवालों ने छप्पन करोड़ के मायरे की मांग तो की ही, द्वारपालों और पूरी बिरादरी के लिए श्रृंगार से लेकर भोजन और सोने के तीर कमान और पीपल के पत्ते गिनकर उतने घडे भरकर सिक्के की सूची भी नानीबाई को अपमानित करने के लिए सौंपी थी. नानीबाई के पिता अंजार आने के लिए एक टूटी बैलगाड़ी की मदद लेते हैं और वह रास्ते में खराब हो जाती है तो खुद भगवान सांवरिया सारथी बनकर पहुंच जाते हैं। जिसका कोई नहीं होता उसका साथी और सारथी सांवरिया सेठ होता है। ये सभी प्रसंग मंगलवार और बुधवार को होंगे.