- Over 50gw of solar installations in india are protected by socomec pv disconnect switches, driving sustainable growth
- Draft Karnataka Space Tech policy launched at Bengaluru Tech Summit
- एसर ने अहमदाबाद में अपने पहले मेगा स्टोर एसर प्लाज़ा की शुरूआत की
- Acer Opens Its First Mega Store, Acer Plaza, in Ahmedabad
- Few blockbusters in the last four or five years have been the worst films: Filmmaker R. Balki
इंसानियत से दूर होता जा रहा है इंसान: अतुल मलिकराम, फाउंडर, PR 24×7
बदलते वक्त के साथ इंसान भी बदल सा गया है। जैसे जैसे देश दुनिया आधुनिकता अपना रही है, वैसे वैसे इंसान अन्य प्राणियों और स्वयं इंसान से दूर होता जा रहा है। इंसान की सोच कुछ यूं हो चली है कि जो मैं कर रहा हूँ, बस वही सही है। अन्य इंसान में वह कमी ही आंकता है। आप सोच रहे होंगे कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ। लेकिन इस बात पर आप स्वयं एक बार विचार करेंगे तो जानेंगे कि यह कड़वा है, लेकिन सच है।
नई पीढ़ी के लोग खुद में सिमट से गए हैं, जो सिर्फ स्वयं के बारे में सोचने पर विवश हो चले हैं। वहीं दूसरी ओर, यदि विश्वास की बात करें तो इंसान की सोच यहाँ आकर पूरी तरह उलट जाती है। अंजान इंसान पर विश्वास करने को इंसान मजबूर है, लेकिन अपने रिश्तेदार या मित्र पर भरोसा करने से पहले वह सौ बार सोचता है। हैरत की बात है कि उसने मजबूरी का तानाबाना इस कदर बुन रखा है कि अपनों के साथ रहने के बाद भी वह उनसे मीलों दूर है।
इसे हम एक अजीब लेकिन चकित कर देने वाले उदाहरण से समझते हैं। जब भी कोई सेलिब्रिटी किसी प्रोडक्ट या सर्विस को प्रमोट करता है, तो लोग इसे खरीदने के लिए बेहद उत्सुक रहते हैं। लेकिन जब हमारा कोई रिश्तेदार या दोस्त नया बिजनेस स्टार्ट करता है, तो उसके प्रोडक्ट या सर्विस लेने में हम न जाने कितनी बार सोचते हैं, उस पर रिसर्च करते हैं, उसे जज करते हैं, और आखिर में यह कह कर प्रोडक्ट नहीं लेते कि यह बहुत महंगा है, या इसकी सर्विस अच्छी नहीं है।
मैं यहाँ एक सवाल पूछना चाहता हूँ कि जिन लोगों से हम कभी मिले नहीं हैं, जिन्हें हम ठीक से जानते तक नहीं हैं, जो पहले से ही सुख-सुविधाओं से समृद्ध जीवन जी रहे हैं, उन पर हम आँख बंद करके विश्वास कर लेते हैं। इसके विपरीत, हमारे ही समान सादी जिंदगी जीने वाले या यूं कह लें कि हमारे अपनों का ही साथ न देने के लिए हमारे पास लाखों कारण होते हैं।
दरअसल ये कारण नहीं हैं, महज बहाने हैं, जी हाँ! सिर्फ बहाने। क्यों हम खुद से नहीं पूछते हैं कि ये हम क्या कर रहे हैं? हम क्यों नहीं समझते हैं कि हम अपनों को ही पीछे की ओर धकेल रहे हैं। हम कैसे किसी अंजान पर अपनों से ज्यादा विश्वास कर सकते हैं? क्यों यह विश्वास हम अपनों के प्रति नहीं बना पाते? अपने दरमियान एक बार जरूर झांके और स्वयं से ये सभी सवाल जरूर करें।
प्रधानमंत्री द्वारा चलाया गया वोकल फॉर लोकल अभियान इन सवालों के सारे जवाब समाहित किए हुए है। तो क्यों न हम इस पहल को ही बढ़ावा देकर अपनों के लिए कुछ अच्छा करें। जब कोई नया काम शुरू करता है, तो हजारों सपने बुनता है, अपनों से मिला स्नेह काम करने की ललक को दोगुना कर देता है। यही वह समय होता है जब आपका साथ उनकी हिम्मत बढ़ाने का काम करता है, और उन्हें नई ऊंचाइयों को छूने की राह मिलती है।
भले ही आपको उस प्रोडक्ट या सर्विस की मौजूदा समय में जरुरत नहीं है, लेकिन आप उसे अन्य लोगों तक पहुंचाकर भी उसे सहयोग कर सकते हैं। इसलिए जब भी आपका कोई रिश्तेदार या मित्र अपने बिजनेस के बारे में पोस्ट करता है, तो उसे लाइक, शेयर और कमेंट करना न भूलें। उन्हें और उनके एफर्ट्स को इनकरेज करें, उनकी इस यात्रा का हिस्सा बनें और उन्हें प्रमोट करें।