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मैं भी एक मां हूं, इसलिए यह समझती हूं कि अपने बच्चों के प्यार में अंधे होकर स्थिति से भटकना कितना आसान होता है: स्नेहलता वसईकर
मुम्बई : यह कहना गलत नहीं होगा कि कभी-कभी एक मां का प्यार उसे उसके लक्ष्य से भटका देता है। एक मां का प्यार पवित्र होता है, लेकिन जब अपने बच्चों को प्यार करने की बात होती है तो एक मां कोई सीमा नहीं जानती। इसलिए मांएं अक्सर अपने बच्चों के प्यार में अंधी हो जाती हैं और अपने बच्चों को लेकर निष्पक्ष सोच से दूर हो जाती हैं।
सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन का ताजा शो पुण्यश्लोक अहिल्याबाई, अहिल्याबाई होलकर की एक प्रेरक गाथा है, जिन्होंने 18वीं सदी में समाज के दकियानूसी नियमों को चुनौती दी थी और लिंगभेद की सीमाओं को तोड़ा था और अपने ससुर मल्हार राव होलकर की मदद से नारी सशक्तिकरण के नए युग का मार्ग प्रशस्त किया था।
जहां इस शो में अहिल्याबाई और उनके ससुर के बीच गजब का तालमेल दिखाया गया है, वहीं इसमें गौतमाबाई (मल्हार राव की पत्नी) का अपने पुत्र खंडेराव के प्रति अटूट प्रेम भी दिखाया गया है। किसी भी प्यार करने वाली मां की तरह वो अक्सर अपने बेटे की कमियों को नजरअंदाज कर देती हैं।
दिलचस्प बात यह है कि इस शो में गौतमाबाई का रोल निभाने वालीं स्नेहलता वसईकर इस मामले में अपने किरदार से जुड़ती हैं, क्योंकि वो खुद भी एक मां हैं और कई बार ऐसे मुश्किल हालातों में उलझ चुकी हैं।
इस बारे में बताते हुए स्नेहलता वसईकर ने कहा, “एक मां होने के नाते मैं गौतमाबाई की उलझन समझ सकती हूं। हम कभी- कभी अपने बच्चों के प्यार में इतने डूब जाते हैं कि अक्सर सही और गलत में फर्क नहीं कर पाते। दिलचस्प बात यह है कि मां होना मेरी और मेरे किरदार की एक समान बात है और इससे मैं अपने किरदार को अच्छी तरह से समझ सकी।
हालांकि वो एक दुलार करने वाली मां हैं, लेकिन गौतमाबाई में दूरदर्शिता की कमी नहीं है। उन्हें हमेशा इस बात का एहसास रहता है कि अपने बच्चे की बेहतरी के लिए उन्हें कुछ कठोर फैसले भी लेने होंगे, जो शायद उस पल अनुकूल ना लगे। इसलिए मैं उनके व्यक्तित्व की कई बातों को समझती हूं और कुछ मामलों में मैं अपने बच्चे के प्रति उनके निस्वार्थ प्रेम से जुड़ सकती हूं।“