- CoinDCX के पहले मुहूर्त ट्रेडिंग सत्र में अभूतपूर्व भागीदारी देखी गई, 5.7 मिलियन यूएसडीटी वॉल्यूम के साथ संवत 2081 का जश्न मनाया गया
- जेएसडब्ल्यू एमजी मोटर इंडिया ने सालाना 31 प्रतिशत वृद्धि के साथ अक्टूबर में 7045 यूनिट की बिक्री का बनाया रिकॉर्ड
- Jsw mg motor india records sales of 7045 units in october 2024 with 31% yoy growth
- Did you know Somy Ali’s No More Tears also rescues animals?
- Bigg Boss: Vivian Dsena Irked with Karanveer Mehra’s Constant Reminders of Family Watching Him
ज्ञान का खजाना बाहर खोजने की आवश्यकता नहीं है, यह हमारे भीतर छुपा है
इन्दौर। जैसे हम कुएं के लिए गड्ढा करते है। और पानी अंदर मिलता ही है । जमीन पर कूड़ा, पत्थर, मिट्टी होने से हमें पानी दिखाई नहीं देता, पानी खुदाई के बाद प्रकट होता है। यानी कूड़ा, पत्थर मिट्टी का आवरण हटने से पानी दिखाई देने लगता है। इसी तरह ज्ञान का खजाना बाहर खोजने की आवश्यकता नहीं है। यह हमारे भीतर छुपा हुआ है। कर्मों का आवरण सामने है। ज्ञान का प्रकाश, खजाना नजर नहीं आता, आवरण हटते ही सब दिखाई देता है।
उक्त विचार खरतरगच्छ गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभ सूरीश्वरजी के शिष्य पूज्य मुनिराज मनीषप्रभ सागर ने गुरुवार को कंचनबाग स्थित श्री नीलवर्णा पाŸवनाथ जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक ट्रस्ट में चार्तुमास धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि कर्मों के आवरण को हटाने के लिए रजोहरण की जरूरत सबसे पहले है। स्वामी तो केवल मार्गदर्शन, दिशा दे सकते है। उस मार्ग पर दौडऩा श्रावक को ही है।
वाणी को भीतर उतारने से मिलेगा सुख- हम हर छोटी-बड़ी बीमारी होने पर डॉक्टर के पास जाते हैं, लेकिन आत्मा की बीमारी के लिए कभी भी कहीं नहीं जाते, जाते भी है तो उसे भीतर नहीं आतारते। मंदिर जाने से समस्या दूर नहीं होगी। वाणी, प्रवचन सुन लेने से भी कष्ट दूर नहीं होंगे, जब तक वाणी को भीतर नहीं उतारते तक तक आत्मा की बीमारी दूर नहीं होगी। स्वामी ने देशना दिया, उसे भीतर उतारने से चिंतन बदलेगा। जिससे सम्यक चिंतन चलेगा और सही-गलत का बोध होगा। इससे सुख मिलेगा।
मुनिराज मनीषप्रभ सागर ने कहा कि हमें परमात्मा को जानने के लिए चेतना को जगाना होगा। हमारी नजर बाहरी दुनिया, बाहरी वातावरण पर होती है। सुख के साधन अच्छे लगते हैं, लेकिन हमारे भीतर के असीम आनंद , सुख मौजूद है, लेकिन आवरण के कारण हमारी नजर नहीं जाती है। स्वामी ने देशना दिया कि तप, आराधना, साधना करें, ताकि लक्ष्य के प्रति जागरूक हो, आत्मा के उत्थान के लिए जागरूक होना जरूरी है। हम ज्ञान को बाहर खोजते है। समुद्र में, बाजार में, दुकानों पर ढूंढते हैं। लेकिन ज्ञान तो भीतर ही मौजूद है। बस अज्ञान के आवरण को हटाने और बोध की जरूरत है।
नीलवर्णा जैन श्वेता बर मूर्तिपूजक ट्रस्ट अध्यक्ष विजय मेहता एवं सचिव संजय लुनिया ने जानकारी देते हुए बताया कि खरतरगच्छ गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभ सूरीश्वरजी के सान्निध्य में उनके शिष्य पूज्य मुनिराज श्री मनीषप्रभ सागरजी म.सा. आदिठाणा व मुक्तिप्रभ सागरजी प्रतिदिन सुबह 9.15 से 10.15 तक अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा करेंगे। रविवार को बच्चों का शिविर लगेगा। कंचनबाग उपाश्रय में हो रहे इस चातुर्मासिक प्रवचन में सैकड़ों श्वेतांबर जैन समाज के बंधु बड़ी संख्या में शामिल होकर प्रवचनों का लाभ भी ले रहे हैं। धर्मसभा में वीरेंद्र डफरिया, राजमल जैन, प्रभातकुमार जैन, दिलीप जैन, सुरेश मेहता आदि उपस्थित थे।