होम्योपैथी का जनक जर्मनी रहा तो वर्तमान और भविष्य भारत है
विश्व होम्योपैथी दिवस पर विशेष
डॉ. ए.के. द्विवेदी (सदस्य, वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड, सी सी आर एच. आयुष मंत्रालय, भारत सरकार)
वरिष्ठ प्रोफेसर (एस.के.आर.पी गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, इंदौर)
होम्योपैथी के विकास क्रम, इसकी विश्वसनीयता और लोकप्रियता के लिहाज से पिछला साल बहुत महत्वपूर्ण रहा है। कोरोना से बचाव में होम्योपैथी की महत्ता 2020-21 में कोरोना की पहली दोनों लहरों के दौरान ही सिद्ध हो गई थी। इससे लोगों का होम्यौपैथी में विश्वास बढ़ा और ये दो मिथक भी दूर हो गये कि होम्योपैथी का इलाज बहुत धीमा होता है और ये बड़ी बीमारियों के लिए बहुत प्रभावी नहीं है।
आप खुद ही सोचिये कि जब होम्योपैथिक दवाओं ने कोविड-19 जैसी महामारी के फैलाव को नियंत्रित करने में अत्यंत अहम भूमिका निभाई हो, उसे हल्के में कैसे लिया जा सकता है। यही वजह है कि अब आम अवाम से लेकर खास मकाम रखने वाले समाज के हर तबके (जिसमें हर आयु और वर्ग के लोग शामिल हैं) का विश्वास होम्यौपैथी पर बहुत बढ़ गया है।
इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब बड़ी संख्या में कैंसर, सिकल सेल, अप्लास्टिक एनीमिया जैसी बीमारियों के मरीज भी होम्योपैथी ट्रीटमेंट अपना रहे हैं और भले-चंग होकर स्वस्थ और आनंदमय जीवन का लुत्फ उठा रहे हैं।
वैसे होम्योपैथी के बारे में लोगों के विचारों में सकारात्मक परिवर्तन 2014 में आयुष मंत्रालय के गठन के बाद से ही होने लगा था। इस मंत्रालय की बहुआयामी और बहुजनहिताय योजनाओं के चलते लोग इस चिकित्सा पैथी की ओर तेजी से आकृष्ट हो रहे थे। लगातार ठीक होते मरीजों की माउथ पब्लिसिटी ने भी इस बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सबसे बड़ी बात ये है कि इस पद्धति से ठीक हुए लोगों को स्थायी तौर पर आराम मिल रहा है और इसकी मीठी-मीठी गोलियों (दवाओं) का कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है।
मगर आधुनिकता की दौड़ में खुद को आगे दिखाने के चक्कर में एक दौर में कुछ लोगों ने न केवल इस पद्धति से खुद किनारा कर लिया था बल्कि वो दूसरों को भी बरगला रहे थे। लेकिन कोरोना काल में इन सबके द्वारा फैलाई गई भ्राँतियां पूरी तरह दूर हो गईं और लोग बड़ी संख्या में होम्योपैथी की ओर आकृष्ट होने लगे।
वित्तीय वर्ष 2022-23 मेरे लिये इस मायने में भी अत्यंत महत्वपूर्ण रहा कि इस दौरान मैंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगूभाई पटेल, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण, सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, पूर्व आयुष मंत्री श्रीपाद नाईक, इंदौर के सांसद शंकर लालवानी, इंदौर महापौर पुष्यमित्र भार्गव आदि स्वनामधन्य विभूतियों से निजी मुलाकातें कर उन्हें होम्योपैथी की खूबियों के बारे में विस्तार से बताया।
यहाँ ये तथ्य विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति, राज्यपाल और वित्तमंत्री से मुलाकात के दौरान मैंने उनसे सिकल सेल और अप्लास्टिक एनीमिया जैसी जानलेवा बीमारियों पर अंकुश लगाने के उपाय करने का निवेदन किया और मुझे बहुत खुशी हुई कि वित्तमंत्री द्वारा प्रस्तुत बजट में सिकलसेल बीमारी को 2047 तक पूरी तरह खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है।
2022-23 वित्त वर्ष के दौरान मेरे कई रिसर्च पेपर प्रकाशित हुए। जिन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत सराहना मिली। मुझे यकीन है कि इन शोध कार्यों से होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति की आगे की दशा व दिशा तय करने में बहुत मदद मिलेगी। मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि होम्योपैथी का जनक बेशक जर्मनी रहा है लेकिन इसका भविष्य भारत में ही सबसे सुरक्षित है और भारत ही इसके भावी विकास क्रम को तय करेगा। होम्योपैथी को अपनाने की लिहाज से हमारी स्थिति अब भी बहुत अच्छी है और भारत को ग्लोबल लीडर के रूप में स्वीकार्यता मिल चुकी है।
अंत में मेरी सभी मरीजों और आम लोगों से यही गुजारिश है कि सुनी-सुनाई बातों पर यकीन करने के बजाय आप एक बार खुले मन से होम्योपैथी को अपनायें। चिकित्सकों के परामर्श के अनुसार समग्र रूप से खान-पान और रहन-सहन पर ध्यान दें तो आप खुद ही तस्दीक करेंगे कि होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति मानव मात्र के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इसे अपना हर व्यक्ति सुखी, सुव्यवस्थित और सुदीर्घ स्वस्थ जीवन जी सकता है। इस चिकित्सा पद्धति में भविष्य के लिहाज से अगणित संभावनायें छुपी हैं। नित नई खोजें हो रही हैं और सफलता के नये आयाम रचे जा रहे हैं।