जीवन में शुभ और मंगल को हमेशा प्रभावी रखें – सुधांशुजी

दशहरा मैदान पर विराट भक्ति सत्संग के पहले ही दिन उमड़ा भक्तों का सैलाब

इन्दौर। हमारी सारी दुनिया सप्तद्वीप, सप्तमहासागर, सप्त चक्र, सप्त रंग, सप्त सुर और सात दिनों के जीवन में गूथी हुई है। इस जीवन की धन्यता इसी में है कि हम अंधकार से प्रकाश, असत्य से सत्य और मृत्यु से अमरत्व की ओर आगे बढ़ें। हमारे जीवन में शुभ और मंगल हमेशा प्रभावी रहें, हम अपने बल और बुद्धि का सदुपयोग करें, अपने संसारी जीवन को शांत चित्त रखें और जो कुछ हमें प्राप्त है, उसके लिए परम पिता परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव व्यक्त करते रहें।

नवरात्रि और नववर्ष की इस बेला में हमारा संकल्प यही होना चाहिए कि हम अपने जीवन को तपस्या और साधना से सार्थक बनाएं। इन दिनों में की गई साधना और सत्संग का लाभ सौ गुना अधिक मिलता है। जीवन में नकारात्मकता, निराशा और चिंता के भावों से मुक्ति के लिए हमारे पुरूषार्थ को सही दिशा सत्संग और साधना से ही मिलेगी।

 ये प्रेरक और दिव्य विचार हैं विश्व जागृति मिशन के संस्थापक आचार्य सुधांशुजी महाराज के, जो उन्होने आज सांय दशहरा मैदान पर आज से प्रारंभ विराट भक्ति सत्संग के शुभारंभ सत्र में उपस्थित भक्तों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। प्रारंभ में मिशन की इंदौर शाखा की ओर से राजेंद्र अग्रवाल, कृष्णमुरारी शर्मा, राजेश विजयवर्गीय, दिलीप बड़ोले, घनश्याम पटेल, गोविंद गंगराडे, विजय पांडे, ओमप्रकाश सोलंकी, गोपाल नीमा आदि ने सुसज्जित व्यासपीठ एवं आचार्यश्री का मालवांचल के भक्तों की ओर से आत्मीय स्वागत किया।

दीप प्रज्जवलन के साथ आचार्यश्री ने शुभारंभ किया। आनंद धाम से आए भजन गायकों ने प्रारंभ में सुमधुर भजन प्रस्तुत किए। प्रख्यात कवि अशोक भाटी ने आचार्यश्री का काव्यमय परिचय दिया। आज पहले ही दिन मैदान का विशाल पांडाल खचाखच भरा रहा। अपरान्ह 4 बजे से ही भक्तों का आगमन होने लगा था। आचार्य सुधांशुजी केे मंच पर आते ही हजारों भक्तों ने खड़े हो कर जयघोष के बीच उनकी अगवानी की। राज्य शासन की ओर से आचार्यश्री को राजकीय अतिथि का दर्जा दिया गया है।  

दशहरा मैदान पर अपने आशीर्वचन में आचार्य सुधांशुजी ने कहा कि यह परमेश्वर की हम सब पर असीम कृपा है कि हमें इस तरह के ज्ञान, भक्ति और सत्संग के अनुष्ठानों में भागीदार बनने का सौभाग्य मिल रहा है। नवरात्रि मंे शक्ति की आराधना का हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए कि हम शांति में सोना और आनंद में जागना सीख जाएं। जिसे यह काम आ गया, वह अपने जीवन को महोत्सव बना लेता है। मक्कार और लापरवाह लोगों के लिए ऐसा कोई अवसर नहीं मिलता। हम अशांति में सोएंगे तो निराशा में जागेंगे। इसी कारण क्रोध और तनाव को जन्म मिलता है और भाग्य को कोसने की नौबत आती है।

हमारे जीवन के सात दिन इस तरह होना चाहिए कि रविवार को पहला दिन ज्ञान का, दूसरा दिन सोमवार शंाति का, तीसरा दिन मंगलवार शुभ और मांगलिक कार्यों का, चैथा दिन बुधवार बुद्धि एवं योजनाओं का, पांचवा दिन गुरूवार अपने कार्यों के विस्तार का, छठा दिन शुक्रवार बल या शक्ति का और सातवां दिन शनिवार अनुशासन का होना चाहिए। ये सातों दिन हमारे जीवन के क्रम में इसी व्यवस्था में शामिल होना चाहिए। चिंता और नकारात्मकता व्यक्ति को थका देते हैं। कर्म हमारे लिए बोझ और तनाव का कारण नहीं होना चाहिए। संसार में चुगली और निंदा में लगे रहने वाले लोग अपने जीवन में शकुनी और मंथरा बनकर रह जाते हैं जिनके जीवन का कोई अन्य लक्ष्य नहीं होता। हमारी बातों का हाजमा भी गणेशजी के विशाल पेट की तरह होना चाहिए। निंदा और चुगली जैसे अवगुण रिश्तों को निगल जाते हैं।

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