- फेलिसिटी थिएटर इंदौर में "हमारे राम" प्रस्तुत करता है
- जेएसडब्ल्यू ग्रुप के चेयरमैन सज्जन जिंदल को एआईएमए मैनेजिंग इंडिया अवार्ड्स में मिला 'बिजनेस लीडर ऑफ डिकेड' का पुरस्कार
- उर्वशी रौतेला 12.25 करोड़ रुपये में रोल्स-रॉयस कलिनन ब्लैक बैज खरीदने वाली पहली आउटसाइडर इंडियन एक्ट्रेस बन गई हैं।
- Urvashi Rautela becomes the first-ever outsider Indian actress to buy Rolls-Royce Cullinan Black Badge worth 12.25 crores!
- 'मेरे हसबैंड की बीवी' सिनेमाघरों में आ चुकी है, लोगों को पसंद आ रहा है ये लव सर्कल
जब तक प्रेम है परिवार में सुख रहता है: मनीषप्रभ सागर

इन्दौर । मुनिराज ने एक-दूसरे से सुख कैसे प्राप्त करें और दूसरे को सुख कैसे दे विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि परिवार में सुख से जीवन तब तक चलता है जब तक प्रेम है। प्रेम धागा है अपनत्व का। प्रेम एक धागा है और मन के धागे में पिरोई जिंदगी। धागा कमजोर हुआ तो माला टूट जाएगी। इस धागे को कमजोर न होने दे, न गांठ पडऩे दें। माला में मेरु का बड़ा महत्व होता है। बिना मेरु की माला परमात्मा की पूजा में काम नहीं आती। मेरु सिरमौर होता है। भले ही यह छोटा मनका हो।
उक्त विचार खरतरगच्छ गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभ सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य पूज्य मुनिराज श्री मनीषप्रभ सागरजी ने रविवार को कंचनबाग स्थित श्री नीलवर्णा पाश्र्वनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक ट्रस्ट में आयोजित चार्तुमासिक धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने आगे धर्मसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से दृष्टांत देकर समझाया कि यदि व्यक्ति को आत्मा से जुडना है तो शांति चाहिए। शांति की तलाश में व्यक्ति भटकता है, लेकिन यह नहीं जानता कि शांति उसके भीतर ही मौजूद है। परिवार, शरीर, स्वास्थ्य, संबंधों में सुख-शांति नहीं होती। शांति तो परमात्मा में होती है, परमात्मा की पूजा में होती है, परमात्मा के जाप में होती है।
कत्र्तव्य से मिलती है बड़ी जिम्मेदारी
उन्होंने कहा कि कत्र्तव्य बडी़ जिम्मेदारी साथ में लाता है। कत्र्तव्यसे या तो अंहकार आता है या व्यक्ति कत्र्तव्यनिष्ठ होता है। प्रत्येक व्यक्ति यह सोचता है कि दूसरा व्यक्ति हमारे साथ कैसा व्यवहार करे, वह यह नहीं सोचता कि उसका क्या कत्र्तव्य है। इससे तनाव, बिखराव होता है। कत्र्तव्य रोकता है, टोकता है, प्रेरणा देता है, गहराई से सोचने पर मजबूर करता है और परिणाम बदलता है। बिना मेरु के माला टूट जाती है। बिखराव होता है। परिवार रूपी माला के मेरु को व्यवस्थित करने के लिए मुखिया को कत्र्तव्यनिष्ठ होना होता है। खुद की इच्छाओं का भी दमन करता है क्योंकि परिवार प्रथम होता है। इससे परिवार ठीक से चलता है। यदि व्यक्ति कत्र्तव्यनिष्ठ है तो परिवार या अन्य विरोधी भी उसके सामने टिक नहीं पााता और समस्याएं समाप्त हो जाती है। यदि व्यक्ति एक दूसरे का स्वभाव, विचार, इच्छा का ध्यान रखे को परिवार स्वर्ग बन जाता है आनंद आता है।
दुख वह होता है जो अपनों ने दिया हो
मुनिराज श्री मनीषप्रभ सागरजी म.सा. ने कहा कि दुख की परिभाषा यह नहीं है जो हमें कांटा लगने, अपमानित होने, ठोकर लगने से होता है । दुख वह होता है जो अपनों ने दिया हो। दुख हद्य में चुभता है, जो अपनों ने दिया हो। पिता सोचते है कि उनका बेटे के प्रति क्या कत्र्तव्य है। बेटा सोचता है कि पिता का उसके प्रति क्या कत्र्तव्य है। इससे दुख उत्पन्न होता है। प्रत्येक व्यक्ति दूसरे के बारे में ही सोचता है। यदि व्यक्ति को आत्मा से जुडऩा है तो शांति चाहिए। शांति की तलाश में व्यक्ति भटकता है, लेकिन यह नहीं जानता कि शांति उसके भीतर ही मौजूद है। परिवार, शरीर, स्वास्थ्य, संबंधों में सुख-शांति नहीं होती। शांति तो परमात्मा में होती है, परमात्मा की पूजा में होती है, परमात्मा के जाप में होती है। मुनिश्री ने इसके लिए कहानी भी सुनाई। रविवार को प्रवचन में युवा राजेश जैन, एडव्होकेट मनोहरलाल दलाल, दिनेश लुनिया, शालिनी पीसा, कल्पक गांधी, अमित लुनिया सहित सैकड़ों संख्या में श्रावक-श्राविकाऐं मौजूद थे।
नीलवर्णा जैन श्वेता बर मूर्तिपूजक ट्रस्ट अध्यक्ष विजय मेहता एवं सचिव संजय लुनिया ने जानकारी देते हुए बताया कि खरतरगच्छ गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभ सूरीश्वरजी के सान्निध्य में उनके शिष्य पूज्य मुनिराज श्री मनीषप्रभ सागरजी म.सा. आदिठाणा प्रतिदिन सुबह 9.15 से 10.15 तक अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा करेंगे। वहीं कंचनबाग उपाश्रय में हो रहे इस चातुर्मासिक प्रवचन में सैकड़ों श्वेतांबर जैन समाज के बंधु बड़ी संख्या में शामिल होकर प्रवचनों का लाभ भी ले रहे हैं।