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मरने की कला सिखाती है भागवत कथा: पं. मेहता
नागर ब्राम्हण समाज परिषद के तीन दिवसीय अनुष्ठान का शुभारंभ
इंदौर. गीता बचपन, जवानी और बुढ़ापे का जीवन प्रबंधन करना सिखाती है. रामायण जीना सिखाती है और श्रीमद् भागवत एक ऐसा दिव्य ग्रंथ है, जो हमे मरने की कला सिखाता है. विडंबना यह है कि हम अब तक जीना तो ठीक, मरना भी नहीं सीख पाए हैं. संसार में जिसका भी जन्म हुआ है,उसकी मृत्यु अवश्य होती है. भागवत पुराण की एक एक पंक्ति और एक एक शब्द में स्वयं भगवान कृष्ण उतरे हुए हैं। भागवत श्रवण करने का सौभाग्य सहज ही नहीं मिलता. पिछले कई जन्मों के पुण्य, पितरों के आशीष और ईश्वर की विशेष कृपा होने पर ही भागवत सुनने या पढऩे का सौभाग्य प्राप्त होता है.
प्रख्यात जीवन प्रबंधन गुरू पं. विजय शंकर मेहता ने आज शाम नागर ब्राम्हण समाज परिषद इंदौर शाखा के तत्वावधान में रवीन्द्र नाट्यगृह में आयोजित तीन दिवसीय संगीतमय भागवत कथा के दौरान व्यक्त किये.
प्रारंभ में आयोजन समिति की ओर से राजेश त्रिवेदी टमटा, हिमांशु पुराणिक, सतीशचंद्र झा, जयेश-पल्लवी झा, प्रवीण त्रिवेदी, प्रदीप-बिंदु मेहता इंदिरा गनेडीवाल, रेखा- राकेश त्रिवेदी, रणछोड़ प्रसाद गनेडीवाल, अश्विन प्रद्युम्न गनेडीवाल, सुभाष नागर आदि ने व्यासपीठ का पूजन कर पं. मेहता का सम्मान किया.ब्रम्हलीन पं. पवन शर्मा की स्मृति में हो रहे इस आयोजन को’प्रभु प्रेम के तीन सत्र’ नाम दिया गया है.
यह आयोजन 1 सितंबर तक रवींद्र नाट्यगृह में प्रतिदिन सांय 6 से रात 9 बजे तक होगा. पं. मेहता इस दौरान भागवत प्रसंगों के माध्यम से जीवन और शांति से जुड़े सूत्रों की अपनी सहज-सरल शैली में व्याख्या करेंगे. इस अवसर पर पं. मेहता की धर्मपत्नी एवं समाज के लिए भागवत कथा का संकल्प लेने वाली श्रीमती आभा मेहता का श्रीमती उषा दवे ने सम्मान किया.
पांच बातों का रखें ध्यान
पं. मेहता ने कहा कि कोई भी कथा सुनते हुए पांच बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए. पहला,कथा श्रवण में भरोसा रखें, क्योकि भरोसे का दूसरा नाम भगवान है। दूसरा, अपने भीतर एक ललक और जिज्ञासा बनाए रखें. तीसरा अपने शिकायती चित्त को विराम दें, चौथा थोड़ा मौन साधें. हम लोग बहुत बोलते हैं. बोलना हमारी जरूरत होना चाहिए, आदत नहीं. पांचवा, कथा श्रवण कोई न कोई संकल्प ले कर करें. हमारे भीतर जो कुछ अनुचित और अनुपयोगी चल रहा है, उसे छोड़ दें और उचित को अपना लें.