अपोलो के डाॅक्टरों ने 5 महीने की बच्ची को लिवर की दुर्लभ बीमारी से बचाया

– बच्ची बड कियारी सिंड्रोम और बाईलरी एट्रिसिया से पीड़ित थी, उसे तुरंत जीवन-रक्षक लिवर ट्रांसप्लान्ट की आवश्यकता थी
– बड कियारी सिंड्रोम एक दुर्लभ बीमारी है जो 2 मिलियन बच्चों में से एक बच्चे को होती है

नईदिल्ली. बड कियारी सिंड्रोम के बेहद दुर्लभ मामले में इन्द्रप्रस्थ अपोलो हाॅस्टिल्स के डाॅक्टरों ने आन्ध्रप्रदेश के काकीनादा से आई 5 महीने की बच्चे सुरमपुदी सेहिथा को नया जीवन दिया है। बच्ची जब सिर्फ 1 महीने की थी, तब उसे पीलिया हो गया था। लगातार सूजन के कारण उसका पेट फूलता जा रहा था और उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी।

डाॅ अनुपम सिब्बल, ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर एवं सीनियर पीडिएट्रिक गैस्ट्रोएंट्रोलोजिस्ट, अपोलो हाॅस्पिटल्स ग्रुप ने कहा,‘‘ बाईलरी एट्रिसिया ऐसी बीमारी है जो 12,000 में से 1 बच्चे में देखी जाती है, इसमें लिवर और आंतों के बीच कनेक्षन नहीं होता। इलाज के लिए सबसे पहले लिवर और आंतों के बीच कनेक्शन बनाना होता है। शुरूआत में एक स्थानीय अस्पताल में ऐसा करने की कोषिष की गई, लेकिन सुरमपुदी का लिवर सिरहोसिस के कारण काफी संकुचित हो चुका था, इसलिए इस प्रक्रिया को पूरा नहीं किया जा सका। उसे लिवर ट्रांसप्लान्ट के लिए अपोलो हाॅस्पिटल्स भेज दिया गया।’’

‘‘जब वह हमारे अस्पताल में आई उसका वज़न 5.5 किलो ग्राम था, उसके पेट में तकरीबन 1 लीटर पानी भरा था। यानि उसका सही वज़न 4.5 किलोग्राम था। हमने सीटी लिवर एंजियोग्राफी में पाया कि बच्ची आॅक्ल्युडेड हेपेटिक वेनस चैनल्स से पीड़ित थी। उसमें बडकियारी सिंड्रोम का निदान किया गया। यह एक दुर्लभ बीमारी है जो 2 मिलियन में से एक बच्चे में पाई जाती है। कियारी सिंड्रोम के परिणाम स्वरूप बच्ची की हालत लगातार बिगड़ती चली जा रही थी, जिसके चलते उसे तुरंत लिवर ट्रांसप्लान्ट की ज़रूरत थी।

बाईलरी एट्रिसिया बच्चों में पाई जानी वाली सबसे आम बीमारियों में से एक है जिसके लिए ट्रांसप्लान्ट की ज़रूरत होती है, वहीं बड कियारी सिंड्रोम एक बेहद दुर्लभ स्थिति है। हम अब तक बच्चों में 320 लिवर ट्रांसप्लान्ट कर चुके हैं, जिनमें से 140 ट्रांसप्लान्ट बाईलरी एट्रिसिया के मरीज़ों पर किए गए हैं।

25 मार्च 2019 को सुरमपदी का लिविंग डोनर ट्रांसप्लान्ट किया गया, जिसमें बच्ची की मां डोनर थीं।

डाॅ नीरव गोयल, सीनियर कन्सलटेन्ट, लिवर ट्रांसप्लान्ट एवं हेपेटोबाइलरी और पैनक्रियाटिक सर्जन, अपोलो हाॅस्पिटल्स ग्रुपने कहा, ‘बडकियारी और बाइलरी एट्रिसिया दोनों के एक साथ होने के कारण लिवर ट्रांसप्लान्ट की प्रक्रिया में जोखिम बहुत अधिक था। बच्चे की ब्लड वैसल्स बहुत छोटी होती है और बड कियारी सिंड्रोम में ब्लड वैसल्स में क्लाॅटिंग की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है। हमने पूरी प्रक्रिया के बारे में विस्तार से परिवार को जानकारी दे दी थी और फैसला लेने से पहले उनकी काउन्सलिंग की गई थी।

पहले बच्ची के पिता ने अपनी बच्ची के लिए लिवर डोनेट करने का फैसला लिया, लेकिन उनका लिवर डोनेट करने के लिए उपयुक्त नहीं था, किंतु बच्ची की मां का लिवर कम्पेटिबल पाया गया। सर्जरी के बाद बच्ची ठीक हो गई और उसे तीन सप्ताह के बाद छुट्टी दे दी गई। अभी उसकी वैसल्स कोरी-आक्युज़न से बचाने के लिए दवाएं दी जा रही हैं, ताकि उसका शरीर ट्रांसप्लान्ट किए गए लिवर को अस्वीकार न कर दे।’’

‘‘बच्ची के माता-पिता आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर हैं, कई दयालु लोगों ने उनकी मदद के लिए हाथ बढ़ाया, जिन्होंने क्राउड-फंडिंग प्लेटफाॅर्म के ज़रिए बच्ची के इलाज में योगदान दिया।’’ उन्होंने कहा।

बच्ची के माता-पिता ने कहा, ‘‘हमारी नवजात बच्ची इतने दर्द में थी, हमारे लिए यह बेहद मुष्किल था। हालांकि अपोलो के डाॅक्टरों ने हमारे भरोसे को टूटने नहीं दिया और हमारी बच्ची को नया जीवन दिया है। हम अपोलो के डाॅक्टरों की टीम तथा उन लोगों के प्रति आभारी हैं जिन्होंने इस मुश्किल समय में हमें आर्थिक सहायता प्रदान की है। इन अजनबियों की वजह से ही आज हमारी बच्ची ठीक है और जीवित है।’’

डाॅक्टरों की टीम में शामिल थे डाॅ शिशिर पारिख, लिवर ट्रांसप्लान्ट एवं पैनक्रियाटिक सर्जन, डाॅ वी अरूण कुमार, लिवर ट्रांसप्लान्ट एवं पैनक्रियाटिक सर्जन, डाॅ हितेन्दर गर्ग, गैस्ट्रोएंट्रोलोजिस्ट एवं हेपेटोलोजिस्ट, डाॅ नमित जेरथ, पीडिएट्रिक इन्टेन्सीविस्ट और डाॅ स्मिता मल्होत्रा, पीडिएट्रिक गैस्ट्रोएंट्रोलोजिस्ट एवं हेपेटोलोजिस्ट।

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