बेबाक अंदाज और बेहतरीन शायरी राहत इंदौरी की पहचान

इंदौर. अपनी शेरो शायरी के लिए पूरी दुनिया में मशहूर राहत इंदौरी का मंगलवार को हृदयघात के कारण निधन हो गया. उन्होंने सुबह ही ट्विट कर कोरोना संक्रमित होने की भी जानकारी दी थी. शाम को अरबिंदो अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली. राहत अपने बेबाक अदांज और बेहतरीन शायरी के लिए दुनिया में जाने जाते रहे हैं.

एक जनवरी 1950 को राहत इंदौरी का जन्म हुआ था. उनके पिता रफ्तुल्लाह कुरैशी एक कपड़ा मिल में काम करते थे. शहर के नूतन विद्यालय में प्रारंभिक शिक्षा के बाद उनकी पढ़ाई आयके कॉलेज में हुई. भोपाल के बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय से उर्दू में एमए करने के बाद राहत इंदौरी ने भोज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि हासिल की.

अपनी रचनाओं के साथ अपने दबंग स्वभाव के लिए राहत साहब जाने जाते थे. देश विदेश में उन्हें अनेक प्रतिष्ठापूर्ण सम्मान से नवाजा जा चुका है. कुछ समय उन्होंने शहर के एक कॉलेज में अध्यापन कार्य भी किया इसके बाद देखते ही देखते उनकी ओजपूर्ण शायरी की ख्याति की सुगंध फैलने लगी और वे मशहूर हो गए.

मुशायरों के स्टेज से उन्होंने एक नए लहजे को पहचान दी. आलम यह होता था कि स्टेट पर आते तो तालियों की गडग़ड़ाहट उनकी वापसी तक गूंजती रहती थी. काफी कम लोग जानते हैं कि राहत साहब का खेलों से भी खासा रिश्ता था.

अपने कॉलेजी दिनों में राहत इंदौरी को फुटबॉल और हॉकी का खासा शौक था. कॉलेज की टीमों का उन्होंने नेतृत्व भी किया. शायरी के बीच उनकी अभावों के साथ भी आंख मिचौनी चलती रही. इसी कारण उन्होंने साइनबोर्ड चित्रकार की भूमिका भी निभाई.

पत्थरबाजी की घटना से हुए थे दु:खी

राहत साहब हाल ही में इंदौर में कोरोना के दौरान डॉक्टरों पर पत्थरबाजी से काफी दु:खी हुए थे. चार महीने पहले यहां टाटपट्टी बाखल में स्वास्थ्य विभाग की टीम पर लोगों ने पथराव किया था. राहत इंदौरी को इस घटना का बहुत दर्द हुआ था. उन्होंने कहा था- कल रात 12 बजे तक मैं दोस्तों से फोन पर पूछता रहा कि वह घर किसका है, जहां डॉक्टरों पर थूका गया है, ताकि मैं उनके पैर पकड़कर माथा रगड़कर उनसे कहूं कि खुद पर, अपनी बिरादरी, अपने मुल्क और इंसानियत पर रहम खाएं. यह सियासी झगड़ा नहीं, बल्कि आसमानी कहर है, जिसका मुकाबला हम मिलकर नहीं करेंगे तो हार जाएंगे.

उन्होंने कहा था- ज्यादा अफसोस मुझे इसलिए हो रहा है कि रानीपुरा मेरा अजीज मोहल्ला है। अलिफ से ये तक मैंने वहीं सीखा है. उस्ताद के साथ मेरी बैठकें वहीं हुईं. मैं बुजुर्गों ही नहीं, बच्चों के आगे भी दामन फैलाकर भीख मांग रहा हूं कि दुनिया पर रहम करें। डॉक्टरों का सहयोग करें. इस आसमानी बला को फसाद का नाम न दें. इंसानी बिरादरी खत्म हो जाएगी. जिंदगी अल्लाह की दी हुई सबसे कीमती नेमत है. इस तरह कुल्लियों में, गालियों में, मवालियों की तरह इसे गुजारेंगे तो तारीख और खासकर इंदौर की तारीख जहां सिर्फ मोहब्बतों की फसलें उपजी हैं, वह तुम्हें कभी माफ नहीं करेगी.

दोनों मजहबों को प्रेमभाव का संदेश दिया

राहत इंदौरी ने दोनों ही मजहबों को प्रेम, सदभाव का संदेश दिया है. पिछले दिनों ही उन्होंने मुस्लिम होने के साथ ही उन्होंने अपनी पोती का नाम मीरा रखा है और पिछली कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर वह राधा बनकर अपने स्कूल गई थी. डॉ. राहत इंदौरी ने यह बात ट्वीट के जरिए दुनिया को बताई थी। वे कहते थे कि मीरा कृष्ण भक्ति का संदेश देता है, जो प्रेम और स्नेह का प्रतीक तो है ही, यह नाम कृष्ण भक्ति की पराकाष्ठा भी माना जाता है. इस मौके पर उन्होंने अपनी पोती की तस्वीर शेयर की थी. कहा था कि ये हमारी पोती है, मीरा इनका नाम है। कल अपने स्कूल में राधा बनकर गई थीं. डॉ. राहत का यह संदेश मजहबों के तनाव के बीच सुखद अहसास देता है.

राहत इंदौरी के यादगार शेर…

राहत अपने बेबाक अदांज और बेहतरीन शायरी के लिए जाने जाते रहे हैं. उनकी शायरी में देशप्रेम की भावना भी झलकती थी. आइए उनके कुछ शेरों पर नजर डालते हैं…

एक ही शेर उड़ा देगा परखच्चे तेरे… तू समझता है ये शायर है कर क्या लेगा
मैं मर जाऊं तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना।

उठा शमशीर, दिखा अपना हुनर, क्या लेगा, ये रही जान, ये गर्दन है, ये सर, क्या लेगा…एक ही शेर उड़ा देगा परखच्चे तेरे, तू समझता है ये शायर है, कर क्या लेगा।

आंखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो, जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो…मैं वहीं कागज हूं, जिसकी हुकूमात को हैं तलब, दोस्तों मुझ पर कोई पत्थर जरा भारी रखो।

घरों के धंसते हुए मंजरों में रक्खे हैं, बहुत से लोग यहां मकबरों में रक्खे हैं…हमारे सर की फटी टोपियों पे तंज न कर, ये डाक्युमेंट हमारे अजायबघरों में रक्खे हैं।

अगर खिलाफ हैं होने दो जान थोड़ी है, ये सब धुआं है कोई आसमान थोड़ी है। लगेगी आग तो आऐंगे घर कई जद में, यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है। हमारे मुंह से जो निकले वहीं सदाकत है..हमारे मुंह में तुम्हारी जबान थोड़ी है. जो आज साहिब-ए-मसनद हैं कल नहीं होंगे, किरायेदार हैं, कोई जाती मकान थोड़ी है…सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में, किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है.

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