अग्रसेन महासभा के कवि सम्मेलन ने बिखेरे इंद्रधनुषी रंग

इंदौर,। श्री अग्रसेन महासभा की मेजबानी में शरद पूर्णिमा की दूधिया रोशनी में बायपास स्थित महासभा भवन परिसर में आयोजित कवियों की महफिल में आए धार, उज्जैन, बदनावर एवं स्थानीय कवियों ने अपने इंद्रधनुषी रंगों से सुधी श्रोताओं को भावविभोर भी किया और झकझोरा भी।
समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, टीकमचंद गर्ग, पवन सिंघल, अजय आलूवाले, अरूण आष्टावाले, प्रमोद बिंदल एवं अन्य समाजसेवी बंधुओं ने महाराजा अग्रसेन का चित्रपूजन कर इस इंद्रधनुषी संध्या का शुभारंभ किया। अध्यक्ष राजेश बसंल पंप, सचिव सीए एस.एन. गोयल, संयोजक राजेश मित्तल एवं ओम अग्रवाल ने प्रारंभ में अतिथियों एवं कवियों का स्वागत किया।
सबसे पहले कार्यक्रम के समन्वयक एस.एन. गोयल ने ‘कविता जगमग ज्योति है, कविता गीता और कुरान, कविता होती नहीं जग में तो जग होता श्मशान’ जैसी पंक्तियों से भूमिका बांधी। बदनावर के हास्य व्यंग्य कवि राकेश शर्मा ने मालवी रचनाओं सहित अनेक प्रस्तुतियों से खचाखच भरे परिसर को गुदगुदाया।
अंगद की प्रार्थना शीर्षक उनकी रचना ने खूब तालियां बटोरी। उज्जैन से आए कवि और गीतकार हेमंत श्रीमाल ने पावस गीत, शरद श्रृंगार, नवगीत एवं पानी बाबा आया रे… गीत को अपनी तरन्नुम मंे सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
धार से आए हास्य कवि और मंच संचालक संदीप शर्मा ने अपनी रचनाओं से जहां देशप्रेम के रंग बिखेरे, वहीं हास्य व्यंग्य रचनाओं से भी खूब तालिया बटोरी। उन्होंने ‘सैनिकों को सलाम’ रचना कुछ इस तरह प्रस्तुत की – दस नहीं बीस लाख देता हूं, किस्मत के इन ऐठों को, हिम्मत है तो नेता भेजे सीमा पर अपने बेटों को…’।
इस अवसर पर महासभा की ओर से ओमप्रकाश बिदासरिया, प्रो. धन्नालाल गोयल, श्रीमती उषा बंसल, श्रीमती आशा गोयल आदि ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट किए। शरद उत्सव की यह दावत छोटी जरूर थी, लेकिन अरसे तक याद रखने लायक साबित हुई। अंत मंे आभार माना सत्यनारायण गोयल ने।

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