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बीमार पड़ने से पहले ही बचाव के लिए कदम बढ़ाएं
इंडियन सोसायटी ऑफ गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी की वार्षिक कॉन्फ्रेंस का हुआ आज शुभारम्भ
इंदौर। पेट के रोग तुरन्त नहीं उभरते, ये लंबे समय तक लापरवाही बरतने पर सामने आते हैं। इसलिए सबसे बड़ी जरूरत अपनी सेहत को लेकर सतर्क रहने की है। लक्षण नजर आने पर सही समय पर मिलने वाला इलाज आपकी जिंदगी को लंबा और आसान बना सकता है।
इंडियन सोसायटी ऑफ गैस्ट्रोइंटेरोलॉजी, एमपी सीजी चैप्टर द्वारा आयोजित दो दिवसीय वार्षिक सभा का आज यहां शुभारम्भ हुआ। इस अवसर पर देश के विभिन्न हिस्सों से पधारे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्यात चिकित्सकों ने विभिन्न समस्याओं और उनके इलाज, प्रबंधन तथा दवाइयों सहित नई तकनीकों को लेकर अपने अनुभव साझा किए तथा इससे संबंधित जिज्ञासाओं को भी सुलझाया।
आयोजन में पेट में सूजन, कॉन्स्टिपेशन, इरिटेबल बाउल सिंड्रोम, एफएमटी तकनीक, सिरोसिस, इंफ्लेमेटरी बाउल डिसीज,लिवर ट्रांस्प्लांटेशन तथा कैंसर आदि से सम्बंधित दवाओं, इलाज तथा अन्य सुविधाओं के प्रबंधन को लेकर प्रेजेंटेशन दिए गए।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, बैंगलोर से आये डॉ. नरेश भट, ने कहा कि जरूरी है कि बीमार पड़ने से पहले ही बचाव के लिए कदम बढ़ाए जाएं। अगर समाज के उस स्तर तक खासतौर पर जानकारी का प्रसार हो सके जहां बीमारियां फैलने और अन हाइजीनिक कंडिशन्स के होने का प्रतिशत सबसे ज्यादा होता है तो न केवल पेट की बीमारियों का रिस्क कम होगा बल्कि यह कॉस्ट इफेक्टिव भी होगा। उन्होंने कहा कि इस तरह की कॉन्फ्रेंस न केवल इस क्षेत्र के अनुभवी विशेषज्ञों द्वारा उनके कामों को प्रदर्शित करने का अवसर देती हैं, बल्कि इस क्षेत्र की नई प्रतिभाओं को सीखने और आगे आने का मौका भी देती हैं।
कार्यक्रम में विशेष अतिथि के तौर पर उपस्थित डॉ. शरद थोरा, डीन, एमजीएम मेडिकल कॉलेज तथा एमवाय हॉस्पिटल ने कहा, अंगदान के मामले में इंदौर शहर ने नई इबारत लिखी है। हमने 35-36 ब्रेनडेड मरीजों से अंग लिए हैं और चार बार ऐसे ही पेशेंट्स से लिवर लेकर सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट भी किया है। भविष्य में हमारे पास अत्याधुनिक सुविधाओं और विशेष प्रोजेक्ट्स के आने की संभावनाएं इस काम को और भी सरल बनाएंगी।
चंडीगढ़ से आये विशेषज्ञ,डॉ. एस. के. सिन्हा, ने हेलिकोबैक्टर पायलोरी बैक्टीरिया से होने वाली समस्याओं के बारे में चर्चा की। साथ ही उन्होंने एसिडिटी के विभिन्न कारणों पर भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने एंडोस्कोपी से होने वाले फायदों के बारे में भी बताया।
कार्यक्रम के बारे में बताते हुए, ऑर्गेनाइज़िंग चेयरपर्सन डॉ. सुनील जैन ने बताया कि पेट के रोगों को लेकर लोगों की लापरवाही इन रोगों को गंभीर बनाती है। अगर समय रहते इन पर ध्यान दिया जाए तो इलाज से जीवन को स्वस्थ और लंबा बनाया जा सकता है। इस कॉन्फ्रेंस के आयोजन का उद्देश्य गैस्ट्रोइंटेरोलॉजी के क्षेत्र में विश्व स्तर पर ख्यातिप्राप्त डॉक्टर्स के अनुभवों को अन्य विशेषज्ञों के समक्ष बांटना और नई तकनीकों व दवाओं की जानकारी से सबको अवगत करवाना था। कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन भी महत्वपूर्ण सेशन होंगे तथा विशेषतौर पर पद्मभूषण डॉ. नागेश्वर रेड्डी व्याख्यान देंगे।’
डॉ. हरिप्रसाद यादव, ऑर्गेनाइज़िंग सेक्रेटरी, आईएसजी, एमपीसीजी चैप्टर, ने जानकारी दी कि आयोजन का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ, जिसमें मुख्य अतिथि डॉ. नरेश भट, वर्तमान प्रेसिडेंट आईएसजी, विशेष अतिथि, डॉ. शरद थोरा, डीन एमजीएम एन्ड एमवाय हॉस्पिटल, ऑर्गेनाइज़िंग चेयरपर्सन डॉ. सुनील जैन, डॉ. हरिप्रसाद यादव, ऑर्गेनाइज़िंग सेक्रेटरी, एन्ड प्रेसिडेंट, आईएसजी, एमपीसीजी चैप्टर, डॉ. उदय जेजुरीकर, सेक्रेटरी आईएसजी, एमपीसीजी चैप्टर, इंदौर गट क्लब प्रेसिडेंट, डॉ. रविंद्र काले, इनकमिंग प्रेसिडेंट आईएसजी, एमपीसीजी, डॉ. प्रकाश भागवत, प्रेसिडेंट, एपीआई इंदौर, डॉ. वी पी पांडे सम्मिलित हुए। इसके पश्चात सरस्वती वंदना की गई। कार्यक्रम में कोर कमेटी का हिस्सा रहे, स्व. डॉ. विक्रम जैन, को दो मिनिट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई।
स्कूलों से पढ़ाएं अंगदान के बारे में
दिल्ली मेदांता से कॉन्फ्रेंस में नेशनल फैकल्टी के रूप में आए डॉ. ए. एस. सोइन, ने कहा-जब हम अपने देश मे लिवर ट्रांसप्लांट की बात करते हैं तो सबसे बड़ी चुनौती होती है दानदाता का मिलना।इसमें लाइव ट्रांसप्लांट और कैडेवर यानी ब्रेनडेड ट्रांसप्लांट दोनों ही शामिल हैं। इस कमी के कारण हमारे यहां मुश्किल से डेढ़ हजार से 1700 तक ट्रांसप्लांट हो पाते हैं जो कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले ट्रांसप्लांट से काफी कम हैं। अच्छी बात यह है कि अब शासकीय स्तर पर योजनाओं का लाभ मिलने और दवाइयों के दाम कम होने, जेनरिक दवाइयां आने से इलाज बहुत सुलभ हो गया है।
उदाहरण के लिए पहले हेपेटाइटिस सी की एक दवाई सौ डॉलर की एक गोली हुआ करती थी, आजकल इसका पूरा इलाज 30 हज़ार रुपये में सम्भव है। जरूरी है जानकारी का होना, नियमित जांचें करवाना खासकर 40 वर्ष के बाद और अगर कोई व्यक्ति हेपेटाइटिस से पीड़ित है तो उसे फैमिली प्लान करने से पहले भी जांचें करवाना जरूरी हैं। इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान जांचें और बच्चे के जन्म के समय टीकाकरण, डाइबिटीज को लेकर सतर्कता रखना भी जरूरी है। लिवर ट्रांसप्लांट के क्षेत्र में कई नई तकनीकें आई हैं जिन्होंने वयस्कों में जीवन की संभावना को 93-95 प्रतिशत और बच्चों में 97 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है। अब समय आ गया है कि हम इन सारी जानकारियों को सभी वर्गों तक पहुंचाएं और स्कूलों से ही अंगदान के बारे में बच्चों को जानकारी देना शुरू करें।
मुंबई से आए नेशनल फैकल्टी विशेषज्ञ डॉ. आकाश शुक्ला ने आयोजन के दौरान ‘सिरोसिस: हॉलिस्टिक मैनेजमेंट,एन्ड स्टेज सिरोसिस’ पर व्याख्यान दिया। डॉ. शुक्ला ने फैटी लिवर डिसीज पर चर्चा करते हुए बताया कि लिवर को खराब करने के मामले में अल्कोहल के अलावा भी करीब 300 अन्य कारण हैं। खान-पान और जीवनशैली की अनियमितता तथा सेडेंटरी लाइफस्टाइल भी इसमें बड़ी भूमिका निभाते हैं। इसलिए जरूरी है कि इन चीजों को लेकर सावधानी रखी जाए और शराब तथा सिगरेट से दूरी बनाई जाए।