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वैचारिक शक्ति बढ़ाएं, खुद पर विश्वास करना सीखें
विश्व जागृति मिशन के संस्थापक आचार्य सुधांशुजी के आशीर्वचन
इन्दौर. ईश्वर ने प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी गुण और काबिलियत से अलंकृत करके ही भेजा है. ऐसा कोई व्यक्ति नहीं हो सकता, जिसके पास कोई गुण, प्रतिभा, खूबी आदि न हो. मां-बाप सपना देखते हैं कि उनका बेटा या बेटी डाक्टर या इंजीनियर बने. गड़बड़ यहीं हैं, सपना बेटे या बेटी को देखना चाहिए. हमारे पास असीम संभावनाएं हैं, लेकिन इसके बावजूद हम ऊंचाई प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। हम जो कुछ भी कर्म कर रहे हैं, उससे प्यार करना हमें आना चाहिए। केवल भाग्य के भरोसे बैठे रहने से कुछ नहीं मिलेगा. आज जरूरत है कि हम अपनी वैचारिक शक्ति को बढ़ाएं, खुद पर विश्वास करना सीखें और परमात्मा पर भी भरोसा रखकर प्रेम, श्रद्धा और भक्ति को बढ़ाने का प्रयास करें।
ये विचार हैं विश्व जागृति मिशन के संस्थापक आचार्य सुधांशुजी महाराज के, जो उन्होंने आज शाम रेसकोर्स रोड स्थित अभय प्रशाल पर ‘एक शाम सदगुरू के नामÓ कार्यक्रम में उपस्थित विशाल समागम को ऐसी अनेक सीखें देते हुए व्यक्त किए। प्रारंभ में भजन गायक सुरेश शर्मा एवं स्वीटी शर्मा ने अपने भजनों की प्रस्तुतियां दी। दीप प्रज्जवलन में मिशन की इंदौर शाखा की ओर से कृष्णमुरारी शर्मा, देवीदास फेरवानी, जगदीश अग्रवाल, दिलीप बड़ोले, घनश्याम पटेल, राजू उपाध्याय, विजय पांडे, अनिल शर्मा, विधायक जीतू पटवारी, पूर्व मंत्री रामेश्वर पटेल, पार्षद सुधीर देडगे आदि शामिल हुए। स्वागत पूर्व महापौर डॉ. उमाशशि शर्मा, श्रीमती कल्पना शर्मा, दिलीप सलूजा, एस.के. छाबड़ा, शिवकुमार निगम आदि ने किया. अभय प्रशाल में आचार्यश्री के आते ही रंगारंग आतिशबाजी और पुष्पवर्षा के साथ उनकी अगवानी की गई। मंच के सामने का पूरा सभागृह और गैलरियां भी भक्तों से भरी हुई थी. इंदौर के अलावा उज्जैन, देवास, बैतूल, धार, रतलाम आदि शहरों के भक्त भी आए थे.
जो काम करें, उससे प्यार करें
महाभारत युग के राजसूय यज्ञ के दौरान के एक प्रसंग का संदर्भ देते हुए आचार्य सुधांशुजी ने कहा कि दुनिया का सबसे गया बीता और बेचारा व्यक्ति वह है जो गुणहीन होता है। हममे से सबके पास दो प्रतिशत प्रतिभा और 98 प्रतिशत मेहनत होती है जो दो प्रतिशत को 100 प्रतिशत में बदलती है। मछली को पेड़ पर चढ़ाने या बंदर को पानी में डालने से उनके गुणों का सही आकलन नहीं हो सकता। हम यही उलटा काम कर रहे हैं। जिस काम में हमारी रूचि है, उससे हमें प्यार भी होना चाहिए। हम जो भी करें, पूरी ईमानदारी और प्यार से साथ करें।
मन को शुभ संकल्पों से परिपूर्ण रखें
उन्होंने कहा कि जीवन का मूल मंत्र यही है कि हम अपने कर्म के माध्यम से प्रेम और भक्ति का ऐसा पर्यावरण सृजित करें कि वहां नकारात्मकता और भाग्यवाद का कोई अस्तित्व ही नहीं रह सके। मन को शुभ संकल्पों से परिपूर्ण रखें, सोते समय सकारात्मक विचार मस्तिष्क में रखें और यह याद रखें कि परमात्मा की कृपा आज भी उतनी ही है, जितनी सतयुग में थी।