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एएमएचः बस एक रक्त-जांच से महिलाओं की फर्टिलिटी क्षमता का लग सकता है पता
इंदौर. समाज के पैरामीटर (मापदंडों) में निश्चित रूप से बदलाव देखा जा सकता है। महिलाएं पहले अपनी शिक्षा और कॅरियर को पूरा कर लेने के बाद ही शादी-विवाह या परिवार शुरू करने के बारे में सोच रही हैं। सुरक्षित एवं प्रभावी गर्भनिरोधक साधनों की आसानीपूर्वक उपलब्धता, विशेष तौर पर लंबे समय तक असर दिखाने वाले रिवर्सिबल कंट्रासेप्शन, का भी इस प्रवृत्ति में महत्वपूर्ण तौर पर योगदान है। महिलाएं यह महसूस नहीं कर पातीं कि गर्भधारण को देर तक टालते रहने से उन्हें स्वाभाविक रूप से गर्भधारण करने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि महिलाओं की फर्टिलिटी उम्र के साथ घटती जाती है। ऐसे मामलों में जहां महिलाएं देर से गर्भधारण का निर्णय लेती हैं, एएमएच नामक एक आसान रक्त जांच की मदद से वे आसानीपूर्वक यह जान सकती हैं कि वे कितने समय तक गर्भधारण न करने के निर्णय को रोके रख सकती हैं।
नोवा आईवीआई फर्टिलिटी, इंदौर की फर्टिलिटी कंसल्टेंट, डाॅ. ज्योति त्रिपाठी ने कहा, ‘‘उम्र के साथ प्रजनन क्षमता का घटना एक निरंतर प्रक्रिया है, जो जन्म से पूर्व से शुरू होकर रजोनिवृत्ति तक चलती है। महिलाओं में उनके जन्म के साथ ही एक निश्चित संख्या में अण्डाशयी पुटक होते हैं, और ये रजोनिवृत्ति तक एपोप्टोसिस एवं अण्डोत्सर्जन द्वारा घटता जाता है। हर महीने औरत अपने प्रजनन काल में कम-से-कम एक अण्डाणु खोती है, जिसके चलते 30-40 वर्ष की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते उसके अंडाणुओं की संख्या घटकर कम हो जाती है। 45-50 वर्ष की उम्र में जब रजोनिवृत्ति होती है, तो अण्डाणुओं का भंडार पूरी तरह से समाप्त हो गया होता है।’’
ओवेरियन रिजर्व, महिला के अण्डाशयों में शेष बचे पुटकों की मात्रा एवं गुणवत्ता को बताते हैं, जो परिपक्व होकर स्वस्थ अण्डाणु के रूप में विकसित हो सकते हैं, जो महिलाओं की प्रजनन क्षमता को दर्शाता है। एक ही उम्र की महिलाओं के ओवेरियन रिजर्व में अंतर हो सकता है। उम्र के आधार पर महिलाओं के ओवेरियन रिजर्व का महत्वपूर्ण रूप से अनुमान लगाया जा सकता है, और कम आयु वाली महिलाओं में इसका सामान्य भंडार होता है, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ-साथ यह घटते चला जाता है। इस संबंध में कई शोध किये जा चुके हैं, जिनसे यह साबित हो चुका है कि तीस वर्ष की उम्र से पूर्व प्रजनन क्षमता अधिकतम होती है और उसके बाद यह धीरे-धीरे घटनी शुरू हो जाती है। बढ़ती उम्र के कारण महिलाओं में नेचुरल डिक्लाइन होेना स्वाभाविक होता है किंतु इसके अतिरिक्त और भी कई कारण हैं जिनसे महिलाओं का ओवेरियन रिजर्व घट सकता है जैसे – एंडोमेट्रिओमा, पेल्विक इंफेक्शन (टीबी), आनुवांशिक कारण, आॅटोइम्युन, अंडाशयों का केमोथेरेपी या रेडियोथेरेपी, प्रायर ओवेरियन सर्जरी एवं अज्ञातहेतुक।
कभी-कभी, किसी महिला का पीरियड भले ही नियमित रूप से आये, लेकिन इस बात की प्रबल संभावना होती है कि उसका ओवेरियन रिजर्व कम हो चुका है। महिलाओं की उम्र बढ़ने के साथ, उसके अंडाणुओं की गुणवत्ता में भी कमी आने लगती है और हो सकता है कि वो उसका पहले की तरह अण्डोत्सर्जन न हो। अधिक उम्र में गर्भधारण की योजना बनाते समय, अण्डाणुओं में क्रोमोजोम संबंधी असामान्यता आ जाने की अधिक संभावना होती है, जिससे गर्भधारण में कठिनाई होती है या गर्भवती हो जाने पर भी गर्भपात का डर रहता है। नोवा आईवीआई फर्टिलिटी के एक अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ कि भारतीय महिलाओं के अण्डाशयों का काॅकेशियन महिलाओं की तुलना में 6 गुना तेजी से क्षरण होता है। इसलिए, पश्चिम का अनुकरण करते हुए गर्भधारण में काफी देरी करने की सलाह भारतीय महिलाओं को नहीं दी जाती है।
एंटी-मुलेरियन हाॅर्मोन टेस्ट है बचाव
डाॅ. ज्योति ने आगे बताया, ‘‘महिलाओं की उम्र एवं फर्टिलिटी के बीच परस्पर संबंध है। चूंकि महिलाओं के अण्डाणुओं का भंडार उनकी उम्र बढ़ने के साथ-साथ समाप्त हो जाता है, इसलिए कपल्स को चाहिए कि वे महिलाओं के ओवेरियन रिजर्व को ध्यान में रखते हुए गर्भधारण के बारे में योजना बनाएं। महिलाओं की फर्टिलिटी क्षमता की जांच के लिए चिकित्सकों ने एंटी-मुलेरियन हाॅर्मोन (एएमएच) टेस्ट का परामर्श दिया है। विकसित होती पुटिकाओं (फाॅलिकल्स) की कोशिकाओं से एएमएच का स्राव होता है और यह ओवेरियन रिजर्व का एक संकेतक है जिसका आकलन रक्त-जांच के जरिए की जाती है। इसके लिए दूसरा आसान टेस्ट है, एंट्रल फाॅलिकल काउंट (एएफसी), जिसमें ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाउण्ड के जरिए ओवेरियन रिजर्व का पता लगाया जाता है। महिलाओं के खून में एएमएच का स्तर और एंट्रल फाॅलिकल काउंट के जरिए उनके ओवेरियन रिजर्व का विश्वसनीय एवं प्रभावी तरीके से पता लगाया जा सकता है और इससे अण्डाणुओं की संख्या और प्रजनन योग्य वर्षों की संख्या जानने में मदद मिलती है।’’
महिलाओं की फर्टिलिटी संभावना का पता लगाने के लिए अन्य जांच भी हैं, जैसे-फाॅलिक्युलर स्टिम्युलेटिंग हाॅर्मोन टेस्ट और बेसल एस्ट्राडियोल। लेकिन अधिकांश अध्ययनों ने विश्वासपूर्वक यह दर्शा दिया है कि आईवीएफ (इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन), प्रजनन अवधि का पूर्वानुमान एवं ओवेरियन डिसफंक्शन जैसी तरह तरह की चिकित्सा स्थितियों की दृष्टि से, ओवेरियन रिजर्व का पता लगाने का सर्वोत्तम उपलब्ध उपाय एएमएच ही है। साथ ही, मासिक चक्र के किसी भी दिन एएमएच टेस्ट किया जा सकता है, क्योंकि एफएसएच या बेसल एस्ट्राडियल स्तरों के विपरित एएमएच कंसेंट्रेशंस, मासिक चक्र से न्यूनतम प्रभावित होते हैं।
पीसीओएस, एंडोमेट्रियोसिस जैसी कुछ स्थितियां हैं, जहां एएमएच सामान्य हो सकता है, लेकिन अण्डाणुओं की गुणवत्ता अच्छी नहीं हो सकती है। वे महिलााएं जो किमोथेरेपी/रेडियोथेरेपी या ओवेरियन सर्जरी कराने वाली हैं, उनके लिए विट्रिफिकेशन की प्रक्रिया लाभकारी है। जिसके माध्यम से हम उन महिलाओं अण्डाणु या भ्रूण बनाकर लैब में सुरक्षित रख सकते हैं। अन्यथा इन उपचारों के प्रति ओवेरियन रिजर्व कम हो सकता है।
ओवेरियल रिजर्व की कमी का तात्पर्य गर्भधारण की अक्षमता नहीं है। दुर्भाग्यवश, ओवेरियन रिजर्व के समाप्त हो जाने पर, दवाओं से उसे वापस लाने में मदद नहीं मिल सकती है। यदि महिलाएं इनफर्टिलिटी की समस्या की शिकार है, तो आईयूआई (इंट्रायूटेरिन इंसेमिनेशन) और आईवीएफ (इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन) से मदद मिल सकती है। पति-पत्नी का एक साथ मूल्यांकन करने की आवश्यकता होती है, ताकि इनफर्टिलिटी के निहित कारण या कारणों का पता लगाया जा सके और वो भी उपचार शुरू करने से पहले। कम ओवेरियन रिजर्व की समस्या का उपचार करने वाले चिकित्सक की चिंता का मुख्य विषय महिलाओं का सीमित प्रजनन काल होता है। शीघ्र पहचान एवं सक्रियतापूर्वक प्रबंधन इसलिए अत्यावश्यक है, ताकि एग डोनेशन की आवश्यकता न पड़े। सरल उपचारों के जरिए गर्भधारण दर कम है और आईवीएफ इस तरह की महिलाओं को गर्भधारण की अधिकतम संभावना प्रदान करता है। अपेक्षतया कम उम्र की महिलाओं पर इनफर्टिलिटी उपचारों का प्रभाव अच्छी तरह से देखने को मिलता है, जबकि समान ओवेरियन रिजर्व वाली अधिक उम्र की महिलाओं पर यह उतना प्रभावशाली नहीं होता।