- निर्माता बिनैफर कोहली ने दिवाली के प्रति अपने प्यार को साझा किया
- राजेश कुमार ने गोवा में एक बेहतरीन पारिवारिक यात्रा के साथ अपनी पत्नी का जन्मदिन मनाया
- अभिनेता पुरु छिब्बर ने दिवाली उत्सव के बारे में बात की
- दिवाली के दृश्यों को पर्दे पर पेश करना बहुत मजेदार है: पार्थ शाह
- Rajan Shahi Celebrates Diwali with the Anupamaa Cast on the Set and Rupali Ganguly was missed!
इलाज संभव है फिर भी विश्व में सबसे ज्यादा कुष्ठ रोगी भारत में
कुष्ठ रोग के बारे में जागरूकता लाने और कुष्ठ रोगियों को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने के लिए सासाकावा-इंडिया लेप्रोसी फाउंडेशन ने आयोजित किया ‘युथ अगेंस्ट लेप्रोसी फेस्टिवल’
इंदौर। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने समाज में कुष्ठ रोग और रोगियों के ऊपर लगने वाले कलंक और भेदभाव को मिटाने के लिए अथक प्रयास किया है। यही कारण है कि उनकी की 150 वी जयंती के उपलक्ष्य में नई पीढ़ी में कुष्ठ रोग के बारे में जागरूकता लाने के उद्देश्य से सासाकावा-इंडिया लेप्रोसी फाउंडेशन ने ‘युथ अगेंस्ट लेप्रोसी फेस्टिवल’ का आयोजन किया ।
इस फेस्टिवल के तहत लेप्रोसी कॉलोनीज में रहने वाले युवाओं से इंदौर के विभिन्न कॉलेजेस के स्टूडेंट्स की बातचीत करवाई गई। इसके लिए कई मजेदार गतिविधियों का आयोजन भी हुआ। सासाकावा-इंडिया लेप्रोसी फाउंडेशन की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ विनीता शंकर बताती है कि ज्यादातर लोगों को कुष्ठ रोग के बारे में मुलभुत जानकारी भी नहीं है। लोग इसे आज भी लाइलाज और संक्रामक मानते हैं इसलिए कुष्ठ रोगियों की मदद करने के बजाये उन्हें समाज से अलग कर देते हैं। जबकि सच तो यह है कि कुष्ठ रोग का इलाज संभव है फिर भी दुनिया में सबसे ज्यादा कुष्ठ रोगी भारत में पाए जाते हैं।
इसका सबसे बड़ा कारण जागरूकता की कमी ही है। इसी समस्या को हल करने के लिए हम इस फेस्टिवल के जरिये स्टूडेंट्स को ऐसे युवाओं से मिलने-जुलने का मौका देता है, जो लेप्रोसी कॉलोनीज में रहते हैं। बातचीत के यह मौके युवाओं को कुष्ठ रोग के साथ जुडी भ्रांतियों को दूर कर लेप्रोसी कॉलोनीज में रहने वाले लोगों और समाज के बीच एक सेतु बनाने का मौका देता है। यह युथ फेस्टिवल ‘हम और वो’ का भेद दूर करने में सहायक सिद्ध होते हैं।
युवाओं में कुष्ठ रोग के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता लाना है उद्देश्य
सासाकावा-इंडिया लेप्रोसी फाउंडेशन की कम्युनिकेशन एंड एड़वोकेसी मैनेजर तैहसीन ज़ैदी कहती है कि दुर्भाग्य की बात है कि कुष्ठ रोग के बारे में जागरूकता फ़ैलाने के प्रयास ना के बराबर होते है, जिसका दुष्परिणाम हमें कुष्ठ रोग के बारे में भ्रम और कुष्ठ रोगियों के प्रति भेदभाव के व्यव्हार के रूप में दिखाई देता है।
हमारे द्वारा की गई रिसर्च के मुताबिक नई पीढ़ी को कुष्ठ रोग के बारे में बहुत ही कम जानकारी है। हमारी फाउंडेशन में हम युवाओं में कुष्ठ रोग के प्रति संवेदनशीलता उत्पन्न करने के प्रयास करते हैं ताकि उन्हें इस रोग के विषय में जानकारी मिल पाए।
बहुत कम लोग जानते है कि कुष्ठ रोग एक बैटीरिया-जनित रोग है, जिसे एंटीबायोटिक्स के जरिये आसानी से दूर किया जा सकता है। जब युवाओं को इस बात की जानकारी होगी तो वे समाज से कुष्ठ रोग के प्रति भ्रांतियों को दूर का समाज को बेहतर और संवेदनशील बनाने के मदद कर पाएंगे। मै सरकार और मीडिया से विनती करती हूं कि वे भी इस नेक काम
में हमारी मदद करें। ज्ञातव्य है कि आज भी दुनिया भर में सबसे ज्यादा नए कुष्ठ रोगी भारत में ही पाए जाते है। चलिए हम सब साथ मिलकर कुष्ठ रोगियों के आर्थिक और सामाजिक पुर्नवास में योगदान कर
महात्मा गाँधी के कुष्ठ रोग मुक्त भारत का सपना पूरा करें।
यूथ फेस्टिवल के दौरान इस नेक कार्य का समर्थन करने की अपील करने के लिए पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन और पुरस्कार विजेता खेल पत्रकार सुश्री अफशां अंजुम ने युवाओं को संबोधित किया।
इंदौर में नई पहल: लेप्रोसी कॉलोनियों में सीखने का नया तरीका : होली-इन-द लर्निंग स्टेशन
कुष्ठ रोग के बारे में जानकारी का अभाव होने के कारण लोग आज भी इसे अनुवांशिक और संक्रामक मानते हैं इसलिए कुष्ठ रोगियों को समाज से बहिष्कृत कर देते हैं। हम डिजिटल मीडियम के जरिये ऐसे लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयत्न कर रहे हैं।
इन लर्निंग स्टेशंस पर हम मनोरंजन और सीखने के ऐसे नए अवसर उपलब्ध करा रहा है, जो ऑफ़लाइन दुनिया संभव नहीं। फ़िलहाल एस-आईएलएफ ने एनआईआईटी फाउंडेशन की मदद से इंदौर के श्री रामावतार कुश कॉलोनी के निवासियों के लिए डिजिटल लर्निंग प्रोग्राम के तरह ये होल-इन-द-वॉल लर्निंग स्टेशनों शुरू किये गए है।
एनआईआईटी फाउंडेशन पहले से ऐसे कार्यक्रम एशिया और अफ्रीका में सफलतापूर्वक चला रहा है और इस तरह के 500 से अधिक लर्निंग स्टेशन बना चूका हैं। समाज से अलग रह रहे 6 से 14 साल के बच्चों के लिए डिजिटल डिवाइड को दूर करते हुए इन ‘होल इन वॉल’ लर्निंग स्टेशनों में प्रारंभिक शिक्षा, जीवन कौशल और कंप्यूटर साक्षरता देने का प्रयास किया जाता है।
बड़ों के लिए डिजिटल शिक्षण केंद्रों के तहत बुनियादी डिजिटल शिक्षण में प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं। प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया ड्रीम को साकार करते इस कार्यक्रम का मुख्य एजेंडा कॉलोनी में डिजिटल रूप से सक्षम और टिकाऊ विकास को बढ़ावा देना है।
सासाकावा-इंडिया लेप्रोसी फाउंडेशन की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ.विनीता शंकर आगे कहती है कि हमारा उद्देश्य सबसे अधिक अयोग्य माने जाने वाले और भेदभाव की शिकार लोगों को नवीन प्रौद्योगिकी के जरिये शिक्षा
और जीवन-यापन के लिए जरुरी अन्य कौशल सीखा कर डिजिटल डिवाइड को ख़त्म करना है।