जगर मगर वेगा अमावस नी काड़ी रात रे, दीवारी अई लई खुशिया नी सौगात रे…
शहर के बाजाऱों में जहाँ दिवारी पूर्व की रौनक दिखने लगी है , दुकाने सजने लगी है । ऐसे में ग्रामीण परिवेश का उत्साह भी चरम पर है । कहीं लीपा पोती हो रही है , तो कहीं चौपालों पर बुजुर्गों को रूई की बातियां बनाते पुराने दिनों को याद करते , बतियाते देखा जा सकता है । बढ़ती मंहगाई को लेकर और बिगड़ते परिवेश से उपजी माथे पर चिंता की लकीरे भी साफ देखी…
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