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“वैवाहिक वर्ष के सात साल (लघुकथा)”
कहते है वैवाहिक गठबंधन की शुरुआत आकर्षण एवं अंत आँखों में छुपी करुणा से होता है। रवि और रीना का परिणय बंधन भी कुछ इसी तरह समय की धुरी पर चलायमान हो रहा था। शादी एक परिपक़्व समय हुई थी, शायद इसलिए वैवाहिक जीवन की गूढ़ता को समझने में भी आसानी हुई। रवि स्वाभाव से बहुत ही शांत पर गंभीर था। पत्नी के सूक्ष्म मनोभावों को समझने का पता नहीं इतना ज्ञान उसमें कहाँ से था। वह रीना के साथ हर समय सम-विषम परिस्थिति में अडिगता से खड़ा रहता था।
दोनों अपनी गलतियों का विश्लेषण एकांत में करते थे और आपस में समझाते थे, पर कभी भी किसी अन्य के सामने एक-दूसरे को अपमानित नहीं किया। रवि ने कभी भी रीना के आत्म सम्मान को ठेस नहीं पहुँचने दी। उसकी कैरियर और वैवाहिक जीवन के परिवर्तनों में रवि उसे भरपूर सहयोग करता था। उसके इसी व्यवहार के कारण रीना भी पति के प्रति समर्पित होती चली गई। जीवन को नई दिशा प्रदान करने के लिए वे साथ-साथ कदम बढ़ाने लगे। जीवन की बगियाँ में दो नन्हें फूल रूद्र और राघव भी महकने लगे। ऑफिस के कार्यों के बीच भी रवि ने रीना की गर्भावस्था और शिशु की देखरेख में रीना का पूर्ण ख्याल रखा। रवि के सहृदय प्रेम के व्यवहार के अनुरूप रीना भी जीवन में नवीन गुणों एवं उद्देश्यों को आत्मसात करती गई। कभी-कभी कुछ निर्णय उन दोनों ने समय और परिस्थिति के अनुरूप भी लिए, परन्तु प्रत्येक निर्णय में उनका भविष्य को लेकर दृष्टिकोण पारदर्शी था।
रीना को भी कैरियर और पारिवारिक जीवन में प्राथमिकता निर्धारित करनी पड़ी, पर रवि के प्रति प्रेम ने उसे खुशियों के अनूठे पल संजोने में सहायता की। इस वैवाहिक यात्रा में वे धर्म के मार्ग पर भी साथ-साथ चलने लगे। रीना की ईश्वर में अटूट श्रृद्धा थी, रवि ने भी उसकी इच्छा अनुरूप धार्मिक यात्राओं एवं पूजन-पाठ में हिस्सा लिया। इन सात वर्षों में रवि ने रीना को सात ज्योतिर्लिंग और दो धाम की यात्रा भी करवाई। बच्चों के साथ जिम्मेदारियों के निर्वहन में भी दोनों ने मिलकर तालमेल बैठाया। उनके वैवाहिक गठबंधन का एक विशिष्ट गुण था कि वे दुनिया के अपने प्रति विश्लेषण से दूर रहा करते थे। संतुष्ट एवं प्रसन्न रहने के चलते उन्होंने श्रेय, अपेक्षा, यश-अपयश, आलोचना, अच्छाई-बुराई, इन सभी से किनारा कर लिया। वे जीवन को काटना नहीं जीना चाहते थे। रवि ने कभी भी रीना की जीवनशैली, उसकी पसंद-नापसंद पर रोकटोक नहीं लगाई, जिससे रीना ने वैवाहिक जीवन में कभी घुटन को महसूस नहीं किया। बच्चों की परवरिश के समय भी वह रीना को कुछ समय घूमने एवं जीवन को नई ताजगी प्रदान करने के लिए बाहर ले जाया करता था, क्योंकि वह रीना की योग्यता एवं उसके त्यागभाव से भलीं-भाँति परिचित था। इन सबके चलते ही यह सात वर्ष विवाह के पश्चात् भी सुन्दर यादों के रूप में संकलित हुए।
इस लघुकथा से यह शिक्षा मिलती है कि वैवाहिक गठबंधन करते समय धन के प्रलोभन से दूर रहना चाहिए। अत्यधिक सुंदरता एवं लालच को दृष्टिगत न रखते हुए गुणों के विश्लेषण के द्वारा ही वैवाहिक धरातल निर्धारित होना चाहिए, क्योंकि इससे एक-दूसरे के मनोभावों को समझने में सरलता होती है, तभी वैवाहिक जीवन एक नवीन ऊर्जा, उत्साह एवं मीठी यादों में पिरोया जा सकता है। रवि और रीना ने अपने वैवाहिक जीवन में अपनी परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए जीवन में नए उद्देश्यों को निर्धारित किया। प्रत्येक विचार हर किसी के लिए प्रियकर नहीं हो सकता, पर वैवाहिक जीवन की सुंदरता तो पति-पत्नी के मनोभावों को समझने से बढ़ेगी। इस परिणय बंधन की प्रगाढ़ता में एक-दूसरे का साथ देना एवं उन्हें अपमानित होने से बचाना भी प्रमुख है। जीवन के अच्छे-बुरे निर्णय सिर्फ हमें अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए लेने है, दुनिया के लिए नहीं। परिवार विस्तार हो या जीवनशैली, पहनावा, खान-पान, स्वास्थ्य सम्बंधित आदतें, सब कुछ अपने जीवन के मूल्याङ्कन के पश्चात् ही निर्धारित करें, दूसरों को देखकर नहीं। बाहरी दुनिया की चकाचौंध, झूठे दिखावे एवं छलावे को अपने वैवाहिक जीवन पर हावी न होने दें।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)