असाध्य रोग नाशक श्री पंचमुखी हनुमान साधना और उपाय

डॉ श्रद्धा सोनी, वैदिक ज्योतिषाचार्य, रतन विशेषज्ञ

आज के समय में असंयमित जीवन शैली और खान पान के कारण अनेकानेक रोग से लोग परेशान रहते है। डॉक्टरों के पास चक्कर लगाते लगाते एड़ियां घिस जाती हैं और जेब खाली हो जाती है।

कई बार रोगी समाप्त हो जाता है किंतु रोग समाप्त नहीं होता। रोगी को ठीक करने के प्रयास में पूरा परिवार मानसिक रूप से रोगी हो जाता है, निराश हो जाता है।

आज आपको श्री सप्तमुखी हनुमान जी का एक प्रयोग दे रहा हूँ जो असाध्य रोगों में भी बेहद लाभकारी है।

हालाँकि इसमें मेहनत अवश्य है किंतु जितनी मेहनत आप डॉक्टर और हस्पतालों के चक्कर लगाने में करते हैं उसमें से कुछ प्रतिशत ऊर्जा आध्यात्मिक रूप से भी कर दें तो निराशा के गहरे अंधकार से निकलकर चमत्कारिक फल मिलने की संभावना है।

श्री हनुमान जी का तीव्र रोगनाशक मंत्र का जप करनें,जल,दवा अभिमंत्रित कर पीने से बड़े से बड़ा असाध्य रोग भी दूर होता है।
प्रयोग यदि दीक्षित व्यक्ति करें तो ज्यादा उत्तम होगा।

ये प्रयोग 36 दिन का है, इसके लिए किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगलवार से ये प्रयोग शुरू करें।
सूर्योदय का समय सर्वश्रेष्ठ है, अन्यथा सांय काल 7 बजे के बाद करें।

सर्वप्रथम हाथ में जल, अक्षत, रोली और पुष्प लेकर सप्तमुखी हनुमान जी का ध्यान करते हुए संकल्प करें की मैं (नाम) पुत्रश्री(पिता का नाम) गोत्र आज मंगलवार …..तिथि को अपने (या रोगी का नाम) के रोग के समूल नाश के लिए श्री सप्तमुखी हनुमान जी के रोगनाशक मंत्र का 36 दिन तक प्रतिदिन 21 माला जप करूँगा। श्री हनुमान जी मुझसे प्रसन्न हो शीघ्र मेरी मनोकामना पूर्ण करें।

फिर एक भोजपत्र पर चमेली की कलम से अष्टगन्ध की स्याही से निम्नांकित हनुमान यंत्र बना लें और इसका नियमित पंचोपचार पूजन करें।

मित्रों ये हनुमान जी का विशिष्ट यंत्र है जो उनका अनुग्रह दिलवाता है, इसके पूजन से उनकी कृपा शीघ्र मिलती है।

एक तांबे के पात्र में जल भरकर सामने रख लें ।
इसके बाद श्री सप्तमुखी हनुमान जी के कवच के 5 पाठ करें और फिर सप्तमुखी हनुमान जी के रोग हरण मन्त्र का जप कर जल अभिमंत्रित कर रोगी को पिलाएं।

सप्तमुखी हनुमत्कवचम्

विनियोग:-
ॐ अस्य श्रीसप्तमुखीवीर हनुमत्कवचस्तोत्रमन्त्रस्य नारदऋषिः अनुष्टुप्छन्दः श्रीसप्तमुखीकपिः परमात्मादेवता ह्रां बीजम् ह्रीं शक्तिः ह्रूं कीलकम् मम सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।

ॐ ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः |ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः |ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः |ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः |ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः |ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः |ॐ ह्रां हृदयाय नमः |ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा |ॐ ह्रूं शिखायै वषट् |ॐ ह्रैं कवचाय हुं |ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् |ॐ ह्रः अस्त्राय फट्|

दिग्बन्ध:- ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः इतिदिग्बन्ध

ब्रह्मोवाच :

सप्तशीर्ष्णः प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिदम् जप्त्वा हनुमतो नित्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते

सप्तस्वर्गपतिः पायाच्छिखां मे मारुतात्मजः सप्तमूर्धा शिरोऽव्यान्मे सप्तार्चिर्भालदेशकम्

त्रिःसप्तनेत्रो नेत्रेऽव्यात्सप्तस्वरगतिः श्रुती नासां सप्तपदार्थोऽव्यान्मुखं सप्तमुखोऽवतु

सप्तजिह्वस्तु रसनां रदान्सप्तहयोऽवतु सप्तच्छन्दो हरिः पातु कण्ठं पातु गिरिस्थितः

करौ चतुर्दशकरो भूधरोऽव्यान्ममाङ्गुलीः सप्तर्षिध्यातो हृदयमुदरं कुक्षिसागरः

सप्तद्वीपपतिश्चित्तं सप्तव्याहृतिरूपवान् कटिं मे सप्तसंस्थार्थदायकः सक्थिनी मम

सप्तग्रहस्वरूपी मे जानुनी जङ्घयोस्तथा सप्तधान्यप्रियः पादौ सप्तपातालधारकः

पशून्धनं च धान्यं च लक्ष्मीं लक्ष्मीप्रदोऽवतु दारान् पुत्रांश्च कन्याश्च कुटुम्बं विश्वपालकः

अनुक्तस्थानमपि मे पायाद्वायुसुतः सदा चौरेभ्यो व्यालदंष्ट्रिभ्यः श्रृङ्गिभ्यो भूतराक्षसात्

दैत्येभ्योऽप्यथ यक्षेभ्यो ब्रह्मराक्षसजंगायात् दंष्ट्राकरालवदनो हनुमान् मां सदाऽवतु

परशस्त्रमन्त्रतन्त्र यन्त्राग्निजलविद्युतः रुद्रांशः शत्रुसङ्ग्रामात्सर्वावस्थासुसर्वभृत

् ॐ नमो भगवते सप्तवदनाय आद्यकपिमुखाय वीरहनुमते सर्वशत्रु संहारणाय ठं ठं ठं ठं ठं ठं ठं ॐ नमः स्वाहा

ॐ नमो भगवते सप्तवदनाय द्वीतीयनारसिंहास्याय अत्युग्रतेजोवपुषेभीषणाय भयनाशनाय हं हं हं हं हं हं हं ॐ नमः स्वाहा

ॐ नमो भगवते सप्तवदनाय तृतीयगरुडवक्त्राय वज्रदंष्ट्रायमहाबलाय सर्वरोगविनाशनाय मं मं मं मं मं मं मं ॐ नमः स्वाहा

ॐ नमो भगवते सप्तवदनाय चतुर्थक्रोडतुण्डाय सौमित्रिरक्षकायपुत्राद्यभिवृद्धिकराय लं लं लं लं लं लं लं ॐ नमः स्वाहा

ॐ नमो भगवते सप्तवदनाय पञ्चमाश्ववदनाय रुद्रमूर्तये सर्व-वशीकरणाय सर्वनिगमस्वरूपाय रुं रुं रुं रुं रुं रुं रुं ॐ नमः स्वाहा

ॐ नमो भगवते सप्तवदनाय षष्ठगोमुखाय सूर्यस्वरूपायसर्वरोगहराय मुक्तिदात्रे ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ नमः स्वाहा

ॐ नमो भगवते सप्तवदनाय सप्तममानुषमुखाय रुद्रावताराय

अञ्जनीसुताय सकलदिग्यशोविस्तारकाय वज्रदेहाय सुग्रीवसाह्यकराय

उदधिलङ्घनाय सीताशुद्धिकराय लङ्कादहनाय अनेकराक्षसान्तकाय

रामानन्ददायकाय अनेकपर्वतोत्पाटकाय सेतुबन्धकाय कपिसैन्यनायकाय

रावणान्तकाय ब्रह्मचर्याश्रमिणे कौपीनब्रह्मसूत्रधारकाय रामहृदयाय

सर्वदुष्टग्रहनिवारणाय शाकिनीडाकिनीवेतालब्रह्मराक्षसभैरवग्रह-यक्षग्रहपिशाचग्रहब्रह्मग्रहक्षत्रियग्रहवैश्यग्रह-शूद्रग्रहान्त्यजग्रहम्लेच्छग्रहसर्पग्रहोच्चाटकाय ममसर्व कार्यसाधकाय

सर्वशत्रुसंहारकाय सिंहव्याघ्रादिदुष्टसत्वाकर्षकायै काहिकादिविविधज्वरच्छेदकाय

परयन्त्रमन्त्रतन्त्रनाशकाय सर्वव्याधिनिकृन्तकाय सर्पादिसर्वस्थावरजङ्गमविषस्तम्भनकराय

सर्वराजभयचोरभयाऽग्निभयप्रशमनाया आधिव्याधिप्रशमनायाध्यात्मिकाधि-दैविकाधिभौतिकतापत्रयनिवारणाय

सर्वविद्यासर्वसम्पत्सर्वपुरुषार्थ-दायकायाऽसाध्यकार्यसाधकाय

सर्ववरप्रदायसर्वाऽभीष्टकराय

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः ॐ नमः स्वाहा य इदं कवचं नित्यं सप्तास्यस्य हनुमतः

त्रिसन्ध्यं जपतो नित्यं सर्वशत्रुविनाशनम् पुत्रपौत्रप्रदं सर्वं सम्पद्राज्यप्रदंपरम्

सर्वरोगहरं चाऽऽयुःकीर्त्तिदं पुण्यवर्धनम् राजानं स वशं नीत्वा त्रैलोक्यविजयी भवेत

् इदं हि परमं गोप्यं देयं भक्तियुताय च न देयं भक्तिहीनाय दत्वा स निरयं व्रजेत्

।।ॐ श्रीअथर्वणरहस्येसप्तमुखीहनुमत्कवचं सम्पूर्णम्।।

श्री हनुमान जी कासप्तमुखी ध्यान कर मंत्र जप करें।

मंत्र:-ॐ नमो भगवते सप्त वदनाय षष्ट गोमुखाय,सूर्य स्वरुपाय सर्व रोग हराय मुक्तिदात्रे ॐ नम: स्वाहा, को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो।

जल अभिमंत्रित करने के दो तरीके हैं

एक तो मंत्र जप करते समय अपने सीधे हाथ की एक अंगुली इस जल सेस्पर्श कराये रखे या जितना आप को मंत्र जप करना हैं उतना कर ले और फिर पूरे श्रद्धा विस्वाससे इस जल में एक फूंक मार दे ..यह मन में भावना रखते हुए की इस मंत्र की परम शक्ति अब जल में निहित हैं । चाहे तो दोनों भी कर सकते हैं।

इसके बाद हनुमान जी की आरती करें और भोग लगाएं। फिर पुनः उनसे प्रार्थना करते हुए उक्त जल को रोगी को पिला दें।

हनुमान जी की कृपा से स्वास्थ्य लाभ अवश्य होगा।

सम्पूर्ण साधना काल में मानसिक और शारीरिक पवित्रता बनाएं रखें।

Leave a Comment